तू ना अम्रत का प्याला दे हमें
सिर्फ रोटी का निवाला दे हमें ...
जिस को पढकर एक हो एहले वतन
वोह मोहब्बत का रिसाला दे हमें ...
ढूंढ ले ज़ुल्मत में मंजिल के निशाँ
या खुदा ..इतना उजाला दे हमे ...
सीख़ पायें हम जहाँ इंसानियत
कोई ऐसी पाठशाला दे हमें .....
दिल मगर उजला हो पारस की तरह
जिस्म गोरा दे कि काला दे हमे ....
और कुछ चाहे ने दे शेरी मगर
शायरी का फन निराला दे हमें ........................संकलन अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
29 सितंबर 2011
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बेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंइंशा अल्लाह... दुआ कुबूल हो......
आमीन..........................