शनिवार को राजनांदगांव के छुरिया इलाके के बखरूटोला गांव के पास हजारों की संख्या में जमा लोगों ने पत्थर-लाठी से मार-मार कर बाघिन की हत्या कर दी थी। बाघ शेड्यूल ए में दर्ज जानवर है। ऐसे में विभाग के अफसरों के सामने बाघिन की हत्या मामले को नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) ने भी गंभीरता से लिया है।
रविवार को अवकाश होने के बावजूद वन विभाग का अमला दिनभर केस से संबंधित गतिविधियों में उलझा रहा। प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) रामप्रकाश ने राजनांदगांव के डीएफओ से पूरे घटनाक्रम की विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। किसी बाघ के आबादी के पास पहुंचने या आदमखोर हो जाने की सूरत में प्रबंध की सारी जिम्मेदारी पीसीसीएफ की ही होती है।
पेट से निकला ट्यूमर
बाघिन के पोस्टमार्टम की प्रारंभिक रिपोर्ट मुख्यालय को प्राप्त हो गई है। इसके मुताबिक बाघिन के अंग-भंग नहीं हुए थे। मुंह के पास के कुछ बाल उखड़े हैं। लोगों की खींचतान में ऐसा होने का अंदेशा है। बाघिन का पोस्टमार्टम रायपुर से गए फील्ड डायरेक्टर वाइल्ड लाइफ राकेश चतुर्वेदी सहित आधा दर्जन अफसरों की मौजूदगी में हुआ। विभागीय अफसरों के मुताबिक बाघिन के पेट से ट्यूमर निकला है। उसे बॉयोप्सी के लिए भेजा गया है।
चंद्रपुर में चार माह पिंजरे में रही बाघिन
मारी गई बाघिन महाराष्ट्र के जंगलों की थी। छह माह पहले चंद्रपुर इलाके में उसने एक ग्रामीण पर हमला किया था। ग्रामीण ने बचाव में कुल्हाड़ी चलायी थी जिससे बाघिन की आंख के पास पांच इंच लंबा जख्म हो गया था। बाद में वन विभाग ने चार महीने चंद्रपुर में पिंजरे में रखकर उसका इलाज किया गया।
दो महीने पहले ही उसे छुरिया के सरहदी इलाके के सेंचुरी में छोड़ा गया था। पोस्टमार्टम के दौरान गोंदिया के डीएफओ ठक्कर चोट के निशान से बाघिन को पहचान लिया।
7 साल की सजा मगर..
वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 2 और 9 के तहत अवैध शिकार में सात साल तक की सजा और सात लाख रुपए जुर्माने का प्रावधान है। परंतु यह नियम केवल रिजर्व फारेस्ट के लिए है। जंगली इलाके से बाहर अवैध शिकार होने पर अधिकतम एक साल और एक लाख के जुर्माने का प्रावधान है। बखरूटोला में जहां बाघिन को मारा गया वह इलाका आरक्षित नहीं है।
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