प्रथम पूज्य। विश्व के पहले आशुलिपिक (महर्षि वेदव्यास ने जिस तेजी से महाभारत के श्लोक बोले, गणेश जी ने उतनी ही तेजी से लिखे भी)। एकदंत नाम से स्तुति।
दो पत्नियां रिद्धि-सिद्धि, दो पुत्र लाभ-क्षेम, दो मुद्राओं वर और अभय से भक्तों का कल्याण करते हैं।
तीन लोक के स्वामी। मस्तक पर त्रिपुंड। तीनों देव ब्रrा-विष्णु-महेश से पूजित। तीनों गण देव-मनुष्य-राक्षस के स्वामी।
चार पुरुषार्थ धर्म-अर्थ- काम-मोक्ष के दाता। चतुभरुज। देवता-नर- असुर-नाग के स्थापक। चारों वेदों के आधार। चतुर्थी को जन्म। चतुर्थी ही इनकी प्रिय तिथि।
पांच देवों (मां दुर्गा-गणेश जी-ब्रrा-विष्णु-महेश) में प्रमुख। पंच महाभूतों में जल तत्व के देवता। शिव पंचायतन के प्रमुख देव। पंचमुखी स्वरूप। पुराणों में गणेशजी के पांच सेवक प्रसिद्ध।
छह भुजाओं (षड्भुजरूप) में गदा, अंकुश, पाश, खड्ग, लड्डू और चक्र धारण करते हैं। जापान में यह रूप पूजा जाता है। गाणपत्य संप्रदाय के छह भेद हैं।
सात सदस्यों (दो पत्नियां, दो पुत्र, माता-पिता, भाई कार्तिकेय) का परिवार। योग शास्त्र वर्णित सात चक्रों में पहले मूलाधार चक्र के प्रतीक। सात अक्षर मंत्र गणपतये नम:।
आठ अवतार हैं। अष्टविनायक महाराष्ट्र के। छंद शास्त्र के आठ गणों के अधिष्ठाता। शक्तिशिव कृत गणाधीश स्त्रोत और वाल्मीकि ने काव्याष्टक के माध्यम से गणोशजी की आठ-आठ श्लोकों में वंदना की।
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