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17 अगस्त 2011

पांच बड़े आन्दोलन जिन्होंने भारत में जनक्रांति की आवाज बुलंद की


भारत में आजादी से लेकर अब तक पांच बड़े आन्दोलन हुए जिन्होंने भारत में आम आदमी की आवाज को बुलंद किया। ये चारों आन्दोलन मोटे तौर पर अहिंसक रहे है।
एक नजर
चंपारण और खेड़ा सत्याग्रह
अंगेजों से भारत की आजादी को लेकर लड़ाई लड़ रहे गांधी जी को इस दिशा में पहली बड़ी उपलब्धि 1918 में चम्पारण और खेड़ा सत्याग्रह,आंदोलन में मिली। किसानों को अपने निर्वाह के लिए जरूरी खाद्य फसलों की बजाए नील की खेती करनी पड़ती थी।

जमींदारों (अधिकांश अंग्रेज)की ताकत से दमन हुए भारतीयों को नाममात्र भरपाई भत्ता दिया जाता था,जिससे वे अत्यधिक गरीबी से घिर गए। गांवों में चारों तरफ गंदगी और,अस्वास्थ्यकर माहौल,शराब,अस्पृश्यता और पर्दा प्रथा थी। उस समय आए एक विनाशकारी अकाल के बाद शाही कोष की भरपाई के लिए अंग्रेजों ने दमनकारी कर लगा दिए जिनका बोझ दिन प्रतिदिन बढता ही गया। खेड़ा (गुजरात) में भी यही समस्या थी। गांधी जी ने वहां एक आश्रम बनाया जहां उनके बहुत सारे समर्थकों और नए स्वेच्छिक कार्यकर्ताओं को संगठित किया गया।
नतीजा

गांधी जी ने जमींदारों के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन और हड़तालों को का नेतृत्व किया। जिसके फलस्वरूप अंग्रेजों ने उस क्षेत्र के गरीब किसानों को अधिक क्षतिपूर्ति मंजूर करने तथा खेती पर नियंत्रण,राजस्व में बढ़ोतरी को रद्द करना तथा इसे संग्रहित करने वाले एक समझौते पर हस्ताक्षर करने को मजबूर हुए। वहीँ खेड़ा में आन्दोलन का नेतृत्व सरदार पटेल किया। उन्होंने अंग्रेजों के साथ विचार विमर्श के लिए किसानों का नेतृत्व किया जिसमें अंग्रेजों ने राजस्व संग्रहण से मुक्ति देकर सभी कैदियों को रिहा कर दिया गया था।

नमक सत्याग्रह


गांधी जी हमेशा सक्रिय राजनीति से दूर ही रहे। 1920 की अधिकांश अवधि तक वे स्वराज पार्टी और इंडियन नेशनल कांग्रेस के बीच खाई को भरने में लगे रहे और इसके अतिरिक्त वे अस्पृश्यता,शराब,अज्ञानता और गरीबी के खिलाफ आंदोलन छेड़ते रहे।
गांधी जी ने मार्च 1930 में नमक पर कर लगाए जाने के विरोध में सत्याग्रह चलाया। 12 मार्च 1932 को गांधी जी ने नमक कानून तोड़ने के लिए 400 किलोमीटर तक का सफर अहमदाबाद से दांडी,गुजरात तक पैदल यात्रा की ताकि भारतीय स्वयं नमक बना सके।


नतीजा

इस यात्रा में हजारों की संख्‍या में भारतीयों ने भाग लिया। भारत में अंग्रेजों की पकड़ को विचलित करने वाला यह एक सर्वाधिक सफल आंदोलन था जिसमें अंग्रेजों ने 80,000 से अधिक लोगों को जेल भेजा।

भारत छोड़ो आन्दोलन

नाजी जर्मनी ने पोलैंड पर आक्रमण कर दिया। परिणामस्वरूप 1939 में जब द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो गया। आरंभ में गांधी जी ने इस युद्ध में अंग्रेजों के प्रयासों को अहिंसात्मक नैतिक सहयोग देने का पक्ष लिया। किंतु कांग्रेस के दूसरे नेताओं ने युद्ध में जनता के प्रतिनिधियों के परामर्श लिए बिना इसमें एकतरफा शामिल किए जाने का विरोध किया।

कांग्रेस के सभी चयनित सदस्यों ने सामूहिक तौर पर अपने पद से इस्तीफा दे दिया। लंबी चर्चा के बाद,गांधी ने घोषणा की कि जब स्वयं भारत को आजादी से इंकार किया गया हो तब लोकतांत्रिक आजादी के लिए बाहर से लड़ने पर भारत किसी भी युद्ध के लिए पार्टी नहीं बनेगी।
गांधी जी ने आजादी के लिए अंग्रेजों पर अपनी मांग को लेकर दबाब बढ़ाना शुरू कर दिया। यह गांधी तथा कांग्रेस पार्टी का सर्वाधिक स्पष्ट विद्रोह था जो भारत से से अंग्रेजों को खदेड़ने पर केन्द्रित था ।

9 अगस्त 1942 को गांधी जी ने अंग्रेजो भारत छोड़ों का नारा दिया। इसी दिन कांग्रेस कार्यकारणी समिति के सभी सदस्यों को अंग्रेजों द्वारा मुबंई में गिरफ्तार कर लिया गया। गांधी जी को पुणे के आंगा खां महल में दो साल तक बंदी बनाकर रखा गया।
उनके खराब स्वास्थ्‍य और जरूरी उपचार के कारण 6 मई 1944 को दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति से पूर्व ही उन्हें रिहा कर दिया गया। अंग्रेज उन्हें जेल में दम तोड़ते हुए नहीं देखना चाहते थे जिससे देश का क्रोध बढ़ जाए।

नतीजा

हालांकि भारत छोड़ो आंदोलन को अपने उद्देश्य में आशिंक सफलता ही मिली लेकिन अंगेजों ने इस आन्दोलन को दबाने के लिए को दमनकारी नीति अपनाई उसने भारतीयों को और संगठित कर दिया।

दूसरे युद्ध के अंत में,ब्रिटिश ने स्पष्ट संकेत दे दिया कि संत्ता का हस्तांतरण कर उसे भारतीयों के हाथें में सोंप दिया जाएगा। इसके बाद गांधी जी ने आंदोलन को बंद कर दिया. कांग्रेसी नेताओं सहित लगभग 100,100 राजनैतिक बंदियों को रिहा कर दिया गया।
अंततः अंग्रेजों को भारत छोड़ कर जाना पड़ा और 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हो गया।

विनोबा भावे का भूदान आन्दोलन

विनोबा भावे ने सन 1950-60 के दशक में भूदान आन्दोलन चलाया। जिसे सफलता भी मिली। कई लोगो ने अपनी जमीने दान में दी। भूदान आन्दोलन को सफलता सबसे अधिक उन क्षेत्रों में मिली जहां पर भूमि सुधार आन्दोलन को सफलता नहीं मिल पाई थी। बिहार,ओड़िसा और आंध्र प्रदेश में इसे सबसे अधिक सफलता मिली थी।
नतीजा
विनोबा के आन्दोलन के पहले भारत में महज कुछ लोगों के पास बहुत ज्यादा ज़मीन थी और बाकी लोगों के पास नाम मात्र की ज़मीन थी या कई लोग भूमिहीन थे। इस आन्दोलन के बाद कई ज़मींदारों ने अपनी ज़मीनों में से भूमिहीनों को ज़मीन दान की। कई राज्यों ने भूमि चकबंदी कानून बनाया,जिससे बहुत हद तक भूमिहीनों की दशा में सुधार हुआ।

वीपी सिंह का आंदोलन (1987)

राजीव गांधी सरकार में रक्षा मंत्री विश्वनाथप्रताप सिंह ने बोफोर्स तोप सौदे में घोटाले की आशंका के चलते प्रधानमंत्री राजीव गांधी से पूछे बिना ही इसकी जांच के आदेश दे दिए। उन्हें मंत्रिमंडल से हटना पड़ा। इसके बाद उन्होंने इस सौदे के खिलाफ जन आंदोलन छेड़ दिया। उनका आंदोलन देश की आवाज बन गया।

जेपी आंदोलन (1974)

जयप्रकाश नारायण (संक्षेप में जेपी) भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थे। लोकनायक जयप्रकाश नारायण को 1970 में इंदिरा गांधी के विरुद्ध विपक्ष का नेतृत्व करने के लिए जाना जाता है। लोकनायक जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने बिहार में अब्दुल गफूर के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के खिलाफ नवंबर 1974 में मुहिम छेड़ी। सबसे बड़ा और अहम मुद्दा था,बिहार में भ्रष्टाचार।
केंद्र में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जब 1975 में आपातकाल लगाया तो पूरे देश में यह आंदोलन‘संपूर्ण क्रांति’ के तौर पर फैल गया। जेपी सहित 600 से भी अधिक विरोधी नेताओं को बंदी बनाया गया और प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी गई। जेल मे जेपी की तबीयत और भी खराब हुई। 7 महीने बाद उनको मुक्त कर दिया गया।

नतीजा

अंत में इंदिरा गांधी को झुकना पड़ा। 1977 में उन्होंने आपातकाल वापस ले लिया और आम चुनाव की घोषण कर दी। 1977 जेपी के प्रयासों से एकजुट विरोध पक्ष ने इंदिरा गांधी को चुनाव में हरा दिया।

5 अप्रैल को अन्ना का भूख हड़ताल

सबसे पहले 1 दिसंबर 2010 को अन्ना हजारे ने स्वामी रामदेव,श्री श्री रविशंकर,किरण बेदी,स्वामी अग्निवेश,अरविंद केजरीवाल के साथ मिलकर प्रधानमंत्री को भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कानून बनाने के लिए पत्र लिखा। साथ ही कहा कि यदि ऐसा नहीं किया गया तो वह 5 अप्रैल 2011 से अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर चले जाएंगे। 200 से ज्यादा लोग हजारे के साथ भूख हड़ताल पर बैठे ।
नतीजा
अन्ना के आन्दोलन से अंततः सरकार को झुकना पड़ा। सरकार अन्ना की टीम से बातचीत को तैयार हुई। दो महीने तक सरकार और अन्ना की सिविल सोसाइटी के बीच चली बैठक के बाद अन्ना टीम के जन लोक पाल और सरकारी लोकपाल विधेयक पर सहमती नहीं बन सकी।
हालांकि सरकार ने दवा किया कि उन्होंने अन्ना की 40 में से 34 शर्तों को मान लिया है। वहीँ टीम अन्ना का कहना है कि सरकार ने उनके द्वारा सुझाए 72 में से मात्र 12 सुझावों को माना है।
लिजाजा दोनों पक्षों में अभी लोकपाल बिल को लेकर गतिरोध जारी है। इसी के तहत अन्ना ने 16 अगस्त को दिल्ली के जेपी पार्क में अनशन का एलान किया। परन्तु सरकार ने उन्हें अनशन वाले दिन ही सुबह गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल भेज दिया।
अन्ना को सरकार ने 16 अगस्त को ही रात में रिहा कर दिया पर अन्ना अनशन की बात को लेकर अभी भी तिहाड़ से बाहर निकलने को तैयार नहीं है।

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