जम्मू. जम्मू-कश्मीर में एक फर्जी मुठभेड़ का मामला सामने आया है। सेना ने रविवार को पुंछ के जंगलों में पुलिस के साथ की गई संयुक्त कार्रवाई में एक शख्स को मार गिराया था। उसका नाम अबु उस्मान बताया गया और कहा गया कि वह आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) का डिविजनल कमांडर था। पर पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट और जांच से पता चला कि वह आम नागरिक था। वह मुसलमान भी नहीं था और दिमागी तौर पर बीमार था।
सेना ने गलती मान ली है। भारतीय सेना के 16 कॉर्प्स के प्रवक्ता ने बताया कि टेरीटोरियल आर्मी और पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप ने सेना को गलत जानकारी मुहैया कराई। प्रवक्ता ने कहा कि दोनों सुरक्षाकर्मियों को हिरासत में ले लिया गया है और जांच के लिए कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी गठित कर दी गई है। सेना पर इससे पहले भी बेकसूर लोगों को आतंकवादी समझकर मारने के आरोप लग चुके हैं।
फर्जी मुठभेड़ को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी सख्त टिप्पणी की है। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फर्जी मुठभेड़ करने वाले पुलिसकर्मियों को फांसी पर लटका देना चाहिए। जस्टिस मार्कंडेय काटजू और सीके प्रसाद की पीठ ने कहा कि पुलिस लोगों की सुरक्षा के लिए होती है न कि भाड़े का हत्यारा बन कर उन्हें मारने के लिए। पीठ की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस काटजू ने कहा, 'फर्जी मुठभेड़ पुलिस द्वारा लोगों की निर्मम हत्या है, जिसमें शामिल पुलिसकर्मियों को कोई रियायत नहीं देते हुए सजा-ए-मौत देनी चाहिए। उन्हें फांसी पर लटका देना चाहिए।'
पीठ ने यह टिप्पणी राजस्थान के दो वरिष्ठ आईपीएस अफसरों (एडीशनल डीजीपी अरविंद जैन और एसपी अरशद) को सरेंडर करने का निर्देश देते हुए की। यह निर्देश फर्जी मुठभेड़ में कथित गैंगस्टर दारा सिंह की हत्या के मामले की सुनवाई के दौरान दिया गया। दारा को 23 अक्टूबर, 2006 को राजस्थान पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप ने मार गिराया था।
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