कुछ अलकेमिस्ट्स के अनुसार ये पत्थर चंद्रमा या किसी दूसरे गृह पर बना था, जो धरती पर गिरा था। वहीं, कुछ को लगता है कि ये किसी अंडे के भीतर सही मटेरियल मिलने पर बनता है। सदियों से इसकी खोज होती रही है, फिर भी ये क्या चीज है और ऐसा कुछ होता भी है या नहीं, ये आज भी राज ही है।
सर आइज़ैक न्यूटन ने भी फिलॉस्फर स्टोन के बारे में समझाया था। कुछ अलकेमिस्ट कहते हैं कि ऐसा कुछ नहीं होता, ये सिर्फ ज्ञान का एक सिस्टम होता है। इस तरह ये एक आध्यात्मिक वस्तु बन गया है। पारस पत्थर के बारे में 300 ईस्वी से लिखित दस्तावेज मिलते हैं।
1620 में इलिआस अशमोले ने लिखा था कि इसका इतिहास आदम से शुरू होता है। आदम को इसकी जानकारी थी और उन्होंने अपने वंशज को ये ज्ञान दिया था। हिंदू, बौद्ध और ईसाई धर्म में भी इसके बारे में लिखा गया है। ये पत्थर कैसा नजर आता है, इस बारे में भी अलग-अलग जानकारी मिलती है। किसी में इसे लाल, किसी में जामुनी किसी में पारदर्शी बताया गया है।
राज है गहरा
हर दौर में लोहे को सोना बनाने वाले पत्थर की खोज होती रही है। इतिहास में 300 ईस्वी से इसकी जानकारी मिलती है। फिर भी ऐसा कुछ होता है या नहीं ये आज भी राज है।
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