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17 अगस्त 2011

विधि के शासन से बंधी है संसद : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली. विधि का शासन संविधान के मूल ढांचे का जरूरी हिस्सा है। इसका उल्लंघन संसद भी नहीं कर सकती। वास्तव में वह भी इससे बंधी हुई है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एसएच कपाड़िया की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय बेंच ने यह व्यवस्था दी है।

संवैधानिक बेंच ने मंगलवार को कहा,‘विधि के शासन को धारणा के रूप में हमारे संविधान में जगह नहीं मिली है। लेकिन इसे हमारे संविधान की मूल विशेषता में माना जाता है। इसका उल्लंघन या समाप्ति संसद भी नहीं कर सकती।’

संसद सर्वोच्च है लेकिन..

जजों ने केशवानंद भारती मामले का जिक्र किया। बेंच के अनुसार इस मामले में अदालत ने साफ कहा था कि विधि का शासन मूल ढांचे का एक बेहद अहम पहलू है। यह संसद की सर्वोच्चता की पुष्टि करता है। साथ ही संविधान के ऊपर उसकी संप्रभुता से इनकार करता है।

हो सकती है न्यायिक समीक्षा

बेंच ने वैसे कानून को गैरकानूनी बताया जो निजी हित के लिए एक व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित करे। ऐसा करना विधि के शासन को कमजोर करना है। यह न्यायिक समीक्षा का विषय है।

अधिग्रहण कानून से जुड़ा मामला

> सुप्रीम कोर्ट में आया मामला रोरिक एंड देविका रानी रोरिक इस्टेट अधिग्रहण कानून, 1996 से जुड़ा है
> इस कानून को कर्नाटक की विधायिका ने बेंगलुरू में 465 एकड़ जमीन के संरक्षण के लिए बनाया था
> यह जमीन रूसी कलाकार स्वेतोस्लाव और पत्नी की थी
> स्वेतोस्लाव ने केटी प्लांटेशन को कुछ जमीन बेची थी
> लेकिन इसे राज्य सरकार ने कानून बनाकर अधिग्रहीत कर लिया था
> इसका मकसद कलाकार दंपती के कीमती पेड़ों, पेंटिग्स तथा आर्ट गैलरी का संरक्षण था

क्या हुआ फैसला

> प्लांटेशन फर्म की याचिका खारिज
> किसी की निजी भूमि का मुआवजे के साथ सार्वजनिक उद्देश्य के लिए अधिग्रहण संभव।
>कोर्ट ने कहा, भले विदेशी निवेशक को मूल अधिकार न दिए गए हैं। लेकिन विधि का शासन देश में चलता है।

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