पीजीआई की एक गायनिकॉलोजिस्ट की ओपीडी में हर रोज औसतन 15 केस ऐसे आते हैं, जिनमें 30 साल से कम उम्र की महिलाओं को पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिसीज (पीसीओडी) नाम की बीमारी है। इसकी वजह से ये महिलाएं मां नहीं बन पा रहीं। इस बीमारी की शिकार सिर्फ शादीशुदा महिलाएं ही नहीं गर्ल्स भी हो रही हैं।
डॉक्टरों के मुताबिक शहर के दूसरे सरकारी और बड़े प्राइवेट अस्पतालों में भी इस बीमारी का मिलता जुलता आंकड़ा है। इस तेजी से बढ़ते आंकड़े की वजह है बदली हुई लाइफस्टाइल। ज्यादा टीवी देखना, खाने में काबरे हाइड्रेट बहुत ज्यादा लेना, जंक फूड, फिजिकल वर्क की कमी जैसी तमाम वजहें पीओडी के पेशंट्स में इजाफा कर रही हैं।
क्या होता पीओडी
महिलाओं के शरीर में अलग-अलग हॉर्मोन एक खास अनुपात में बनते हैं। पीसीओडी हॉर्मोन का संतुलन बिगड़ने की वजह से होता है। इसकी वजह से गर्भाशय में सिस्ट डिवेलप हो जाती है, जिसकी वजह से हर महीने गर्भाशय (ओवरी) में बनने वाला एग या तो बनता नहीं है, या फिर रिलीज नहीं हो पाता।इस वजह से गर्भधारण की संभावना खत्म हो जाती है। कई बार ओवरी का साइज बढ़ने की वजह से कुछ हॉर्मोन ज्यादा मात्रा में बनने लगते हैं। पीरियड रेग्युलर न होना, तेजी से वजन बढ़ना, चेहरे पर बहुत ज्यादा बाल या फिर मुंहासों का आना, इस बीमारी के शुरुआती लक्षण हो सकते हैं।
मेंटल स्ट्रेस भी है वजह
पीजीआई के डिपार्टमेंट ऑफ ऑब्सटेट्रिक्स और गायनी में असिस्टेंट प्रफेसर डॉ. शालिनी गेंदर ने बताया कि उनकी ओपीडी में रोजाना करीब 15 केस ऐसे आते हैं जहां यंग गल्र्स को पीसीओडी या एंडीमीट्रियॉटिक सिस्ट नाम की बीमारी होती है। ऐसे केसेस में सबसे पहले पेशंट को वजन कम करने के लिए कहा जाता है। आधी मुश्किल तो इसी से सुलझ जाती है। इसके बाद कुछ महीनों का कोर्स चलता है, जिसमें हॉर्मोनल ट्रीटमेंट किया जाता है। बढ़े हुए वजन के अलावा तनाव भी इस बीमारी की वजह बन रहे हैं।
कॉस्मो हॉस्पिटल, मोहाली में गायनिकॉलोजिस्ट डॉ. अनुपम गोयल के मुताबिक हमारी ओपीडी में हर तीसरी लड़की इस मुश्किल के साथ आती है। पीसीओडी की अहम वजह दिमागी तनाव और बदली हुई लाइफस्टाइल हैं। जब तक इलाज चलता है, असर दिखता है, मगर उसके बाद हालत जस की तस। डॉ. अनुपम ने एक उदाहरण के जरिए ये बात समझाई। उनके मुताबिक पिछले दिनों एक पेशंट आई, जो कॉल सेंटर में काम करती है। उसकी उम्र 28 साल है और वजन 120 किलो। उसके पीरियड रेगुलर नहीं हैं। उसे वर्कआउट की सलाह दी जाए तो गौर नहीं करती। जब तक मेडिसन चलती है, सब ठीक रहता है। उसके बाद फिर वही दिक्कतें।
ओवरी-ट्यूब का बिगड़ा रिश्ता
डॉ. रीति ने बताया कि पीओडी अब कॉमन बीमारी होती जा रही है। गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज के गाइनी डिपार्टमेंट में 15 फीसदी केस इसी तरह के आ रहे हैं। पीसीओडी के अलावा एंडोमीट्रियॉटिक सिस्ट की वजह से भी मां बनने में अड़चन आ रही है। इस बीमारी में ओवरी और फेलोपिन ट्यूब का रिलेशन बिगड़ जाता है। ओवरी के अंदर सिस्ट बन जाती है। इसकी वजह से इंटरनल ब्लीडिंग भी शुरू हो जाती है।
इसकी वजह से भी एग रिलीज नहीं हो पाते। इसका सबसे ज्यादा प्रचलित इलाज है लेप्रोस्कोपी ओवेरियल ड्रिलिंग। इसमें एंडोमीट्रियॉसिस लेयर को जला दिया जाता है और ओवरी -ट्यूब का रिलेशन ठीक किया जाता है। इसके अलावा कई केसेस में एक ओवरी रिमूव कर दी जाती है और दूसरी ओवरी में ट्रीटमेंट किया जाता है। अगर ओवरी में कैंसर डिवेलप हो रहा है, तब इसे पूरी तरह से निकालना पड़ता है।
पीओडी के कई मामलों में पूरी जिंदगी इलाज चलता है। पेशंट को रेग्युलर दवाई लेनी पड़ती है। इसलिए जरूरी है कि गल्र्स अपनी लाइफस्टाइल सही रखें। सही खुराक और एक्सरसाइज पीसीओडी को रोकने में मददगार है।
डॉ. शालिनी गेंदर
कई बार ओवरी में टीबी होता है पर अल्ट्रासाउंड स्पेशलिस्ट इसे पीसीओडी बताकर पेशंट को मिसगाइड कर देते हैं। इसलिए जरूरी है कि सही जगह से अपना चेकअप करवाएं। ऐसे केस में पहले टीबी को दूर किया जाता है और फिर हार्मोस दिए जाते हैं।
- डॉ. रीति मेहरा
bahut hi umda jaankari dene ke liye dhnyawad..mere blog pe bhi aapka swagat hai
जवाब देंहटाएंshandar jaankari dene ke liye hardik dhnyawad..mere blog pe bhi aapka hardi swagat hai
जवाब देंहटाएंबहतरीन जानकारी के लिए आभार अख्तर भाई ।
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