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14 अगस्त 2011

मन को धोने के लिए आंसू की एक बूंद भी काफी है

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जब नाम, दाम, पद, प्रतिष्ठा खूब मिलने लगती है तो तन से पहले इसका प्रभाव मन पर होता है। ऐसे लोगों की बॉडी-लैंग्वेज बदल जाती है, लेकिन इससे बड़ा नुकसान नहीं होता। झंझट तब शुरू होती है जब इन उपलब्धियों में मन सक्रिय होने लगता है।

धन में अच्छाई-बुराई दोनों होती हैं। उपलब्धियां होती ही ऐसी हैं, ये मिल जाएं तो भी कुछ खो जाता है और ये खो जाएं तो भी कुछ हासिल हो जाता है। मन की देखने की दृष्टि अलग होती है। वह उपलब्धियों के प्रति आसक्ति पैदा करता है, जबकि हमारा इनसे जुड़ाव उपयोगिता के आधार पर होना चाहिए।

मन को आवश्यकताओं की पूर्ति से अधिक उसके भोग में रुचि होती है। इसलिए जीवन में जब उपलब्धियां आएं तो मन की सफाई जरूर करें। जैसे अतिथि के आने के पूर्व साफ-सफाई की जाती है। मन की सफाई का मतलब वासनाओं का विसर्जन और विवेक का आगमन है।

भक्ति मार्ग में मन की सफाई के लिए आंसू का महत्व बताया है। आप कितने ही सफल हों, एकांत में अपने परमात्मा के सामने आंसू बहाने की तैयारी जरूर रखें। भगवान के सामने जिन्होंने आंख के आंसू सुखाए, फिर उनका मार्ग पथरीला हो जाएगा।

मन को धोने के लिए आंसू की एक बूंद भी काफी है। इस समय तर्क व बुद्धि को दूर रखिए। जीवन में तृप्ति चाहें तो परमात्मा के सामने आंसू बहाएं। व्यर्थ जाएंगी ये बूंदें, यदि दुनिया के सामने बहाएंगे और यदि परमात्मा के सामने गिराएंगे तो अमृतकण बन जाएंगी।

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