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27 अगस्त 2011

अन्ना की लड़ाई थोड़ी जीत बढ़ी हार .....................

हाल ही में देश की संसद ने दस दिन बाद अन्ना हजारे की मांग पर जो आश्वासन दिया है वोह देश की जनता का सम्मान है या अपमान हम समझ नहीं पा रहे हैं लेकिन एक बात तो है के अन्ना की इस लड़ाई में इसे थोड़ी जीत और बढ़ी हार माना जा सकता है .......दोस्तों सभी जानते हैं के अन्ना की मनाग वाजिब थी देश के कुछ भ्रष्ट और दलालों को छोड़ कर सभी लोग उनके साथ थे ..सरकार ने लगातार अन्ना और जनता के साथ छल किया उन्हें धोका दिया जनता को थकाया छकाया बहानेबाजी की जनता को अपमानित किया संसद जनता से बढ़ी कहकर जनता अपमान किया लेकिन अन्ना जिन्होंने एलान किया के संसद में जन लोकपाल विधेयक पारित होने तक अना अनशन पर रहेंगे ..अन्ना के इस एलान के साथ देश उनके साथ था कोंग्रेस और भाजपा ने इस एलान के बाद चाल्बज़ियाना शुरू की और अन्ना को अपने चमचों के माध्यम से अपनी चालों के घेरे में लिया नतीजा आज सामने है अन्ना जो गांधीवादी अनशन के हथियार से लड़ाई के मैदान में थे देश की जनता जिनके साथ थी उन्हें अपना प्रण तोड़ना पड़ा भ्रष्टाचार के खिलाफ इस लड़ाई के मामले में जो एलान किया था उसमे बीच का रास्ता निकालना पढ़ा और सरकार के सामने आधे घुटने टेक कर बीच का रास्ता निकाल लिया अब आप ही बताये जब देश एक जुट था तब सरकार ने यह तमाशा दिखाया है तब देश बनता हुआ होता है सो रहा होता है तो सरकार क्या गुल खिलाती होगी आप समझ सकते है सरकार की हठधर्मिता के आगे अन्ना ने बीच का रास्ता अपनाया अपननी जिद छोड़ी अब आप ही बताइए के यह जीत है पूरी जीत है या फिर जनता की इस लोकतंत्र की सरकार की तानाशाही के आगे हार है क्योंकि लोकपाल और जन्लोक्पाल विधेयक इतनी बढ़ी लड़ाई के बाद भी अभी जनता से एक वर्ष से भी अधिक दुरी पर पहुंच गया है फिर क्यूँ देश को दस दिन तक आन्दोलन की आग में धकेला गया सोचने की बात है .........अकह्तर खान अकेला कोटा राजस्थान












2 टिप्‍पणियां:

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