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14 अगस्त 2011

यह भ्रम न पालें कि मुझे ही सबकुछ आता है औरों को नहीं

दुनिया में कई तरह के भ्रम होते हैं, उनमें से एक भ्रम है यह मान लेना कि मुझे सबकुछ आता है। उससे भी बड़ा भ्रम यह है कि मेरे मुकाबले दूसरों को कुछ नहीं आता। यहीं से गड़बड़ शुरू हो जाती है।

एक बुरी आदत जीवन में यह उतर जाती है कि अपनी गलतियां ढूंढ़ने में रुचि नहीं रहती, सारे दोष दूसरों पर थोपने लगते हैं। जब भी आप किसी जिम्मेदार पद पर हों और आपके पास कोई महत्वपूर्ण कार्य हो तो पहली बात यह करें कि उससे संबंधित सारी जानकारियां और ज्ञान जरूर बटोर लें।

जानकारी का अभाव बिल्कुल न रखें। आप विशिष्ट और अधिकार संपन्न इसी बात के लिए होंगे कि आपके पास अन्य के मुकाबले उस विषय की जानकारी अधिक होगी। लगातार आत्मसमीक्षा करते रहें। अपनी जानकारियों को अपडेट करते रहें।

प्रतिदिन की पूजा में नवीनता बनाए रखें। भारतीय शास्त्रों ने कहा है कि भक्ति के प्राण उसकी नवीनता में बसे हैं, इसे बासी बिल्कुल न होने दें, वरना हम थोड़ी भी चुनौती आने पर चिड़चिड़े हो जाते हैं, तनावग्रस्त बन जाते हैं।

यह भ्रम न पालें कि हमें सब आता है और दूसरों को कुछ नहीं। जितनी भी देर आप पूजा करें, पूरी तरह डूबकर उसे नवीन बनाएं। एक भाव-दशा में जीना सबसे अच्छी पूजा है।

पूजा में बैठकर अपने भीतर की स्थिति का मूल्यांकन करें। जितना हम भीतर उतरकर पूजा करेंगे, नवीन होते जाएंगे। जब परमात्मा को फूल, वस्त्र व भोग ताजा लगाते हैं तो स्वयं भी बासी बनकर न चढ़ें।

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