हालांकि भारत के नजरिए से यह बड़ी राशि है लेकिन जहां तक अमेरिका का सवाल है यह उसके सकल घरेलू उत्पाद का 0.3 फीसदी यानी उसके कुल विदेशी कर्ज का महज एक फीसदी है।
अमेरिकी राजकोषीय आकंड़ों के मुतबिक अमेरिका का कर्ज बोझ 15 हजार अरब डालर के करीब पहुंच चुका है जिसमें से साढ़े चार हजार अरब डालर उसे विदेशी कर्ज के रूप में चुकाने हैं। यानी इतनी कीमत की प्रतिभूतियों उसने दूसरे देशों को बेच रखी हैं।
चीन ने 1.15 खरब डॉलर की अमेरिकी प्रतिभूतियां अपने पास रखी हैं और वह सबसे बड़ा अमेरिकी प्रतिभूति धारक है। भारत इस मामले में 14वें पायदान पर है और इसके पास करीब 1.83 लाख करोड़ रुपये की अमेरिकी प्रतिभूति है।
चीन के बाद जापान (912 बिलियन डॉलर), ब्रिटेन (346 बिलियन डॉलर), ब्राजील (211), ताइवान (153), हांग कांग (122), रूस (115), स्विट्जरलैंड (108), कनाडा (91), लक्जमबर्ग (68), जर्मनी (61), थाइलैंड (60), सिंगापुर (57) और भारत (51 बिलियन डॉलर) का नंबर आता है। भारत से कम कर्ज देने वाले देशों में क्रमश: तुर्की, आयरलैंड, दक्षिण कोरिया, बेल्जियम, पोलैंड, मैक्सिको, इटली, नीदरलैंड्स, फ्रांस, फिलीपिंस, नॉर्वे, स्वीडन, कोलंबिया, इजराइल, चिली, मिस्र, मलेशिया और ऑस्ट्रेलिया का नंबर है।
संकट के बावजूद अमेरिका की प्रतिभूतियां इस दौरान भी दुनिया में सबसे ज्यादा 500 अरब डालर की बनी रही है जबकि चीन की 300 अरब डालर की। ऐसे में यह साफ है कि अमेरिका की साख अभी भी दुनिया में काफी मजबूत है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय साख निर्धारक संस्था स्टैंडर्ड एंड पुअर्स (एसएंडपी) ने चेतावनी दी है कि अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग में और गिरावट हो सकती है। एजेंसी ने 95 साल में पहली बार दुनिया की सबसे बड़ी अर्थ-व्यवस्था अमेरिका की ‘एएए’ रेटिंग खत्म डबल ए प्लस कर दी है। (पूरी खबर पढ़ने के लिए रिलेटेड खबरों पर क्लिक करें)
अमेरिकी साख घटने की खबरों के बीच धराशायी हुए बाजारों और चिंतित निवेशकों को देखते हुए वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था का बुनियादी ढांचा काफी मजबूत है। उधर भारतीय रिजर्व बैंक ने भी कहा है कि वह अमेरिका से प्रतिभूति खरीद को बंद करने की स्थिति में नहीं है। देश के विदेशी मुद्रा भंडार का बड़ा हिस्सा डालर में है। ऐसे में रिजर्व बैंक ने डालर पर संभावित खतरे को देखते हुए एहतियात के तौर पर मुद्रा भंडार को आगे से अन्य मुद्राओं में रखने की बात जरूर कही है।
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