इंटरनेट इस युग में जीने और आगे बढ़ने के सबसे शक्तिशाली माध्यम के रूप में स्थापित हो रहा है। इंटरनेट के माध्यम से आज हर तरह की सूचना बड़ी आसानी से मिल जाती है। वर्ल्ड वाइड वेब के जन्मदाता टिम बर्नर्स ली चाहते हैं कि इंटरनेट को मूल अधिकारों में शामिल किया जाए। फिनलैंड में इंटरनेट को नागरिक अधिकारों में शामिल कर लिया गया है। इसे अब प्राकृतिक माध्यम मानना शुरू कर दिया है।
मिस्र ने साबित किया कि यह लोकतांत्रिक उद्देश्यों को पाने का मजबूत साधन बन सकता है। कोई देश या कंपनी इसकी ठेकेदार न बन सके। इसलिए इंटरनेट की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक नियामक संस्था बनना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इंटरनेट की उपलब्धता मूलभूत मानवाधिकार है।
संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिनिधि फै्रंक ला रू ने ये रिपोर्ट विचारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के प्रचार और संरक्षण के अधीन तैयार की है। इंटरनेट की सुविधा ऐसी परिस्थिति में और महत्वपूर्ण हो जाती है, जब राजनीतिक अशांति फैली हो। ये देखते हुए कि इंटरनेट, असामानता से लड़ने के साथ-साथ विकास और मानव प्रगति को बढ़ावा देने जैसे बहुत से मानवाधिकारों के लिए एक अनिवार्य साधन बन चुका है, इंटरनेट की सुविधा हर व्यक्ति को उपलब्ध कराना सभी देशों की प्राथमिकता होनी चाहिए।
इंटरनेट पारदर्शिता बढ़ाने, जानकारी उपलब्ध कराने और लोकतांत्रिक समाज के निर्माण में आम नागरिकों की सRिय भागीदारी बढ़ाने के लिए 21 वीं शताब्दी के सबसे शक्तिशाली उपकरणों में से एक है। तकनीक ही ऐसी चीज है जो समाज में सबके लिए समान रूप से प्रभावी होती है। दुनिया भर में दो अरब लोग इंटरनेट का उपयोग कर रहे हैं। न्यूज पोर्टल एमपीपोस्ट डॉट कॉम के संपादक सरमन नगेले ने बताया कि इंटरनेट एक क्रांतिकारी माध्यम है जो रेडियो, टेलीविजन या प्रकाशित सामग्री से अलग है, जो संवादात्मक है जिसमें लोग केवल जानकारी ग्रहण नहीं करते बल्कि उसमें योगदान भी करते हैं।
भविष्य का समाज इंटरनेट और इंटरनेट प्रोटोकॉल वर्जन 6 से संचालित होगा। महज बीस साल में इंटरनेट ने आज वो मुकाम हासिल कर लिया है कि दुनिया भर में करीब 80 प्रतिशत लोग चाहते हैं कि इंटरनेट के प्रयोग को उनके मौलिक अधिकार में शामिल कर देना चाहिए। एक सर्वेक्षण के अनुसार हर पांच वयस्क लोगों में से हर चार ये मानते हैं कि उन्हें इंटरनेट के प्रयोग की सुविधा मौलिक अधिकारों की तरह मिले।
दुनिया भर के 26 देशों के कुल 27 हजार वयस्क लोगों की इंटरनेट के बारे में राय ली गई। भारत में 70 प्रतिशत लोग इंटरनेट को अपने विचारों की अभिव्यक्ति का एक सुरक्षित स्थान मानते हैं। 67 प्रतिशत लोग इंटरनेट पर फेसबुक, ट्विटर, लिंक्डइन और माई स्पेस जैसी सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों पर समय बिताते हैं। सर्वेक्षण में लोगों ने इंटरनेट को अभिव्यक्ति का एक बेहतर माध्यम बताया है, हालांकि इसके पक्ष और विपक्ष में लोगों की संख्या लगभग बराबर थी। सर्वेक्षण से यह भी पता चला है कि इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले ज्यादातर लोग चाहते हैं कि इस पर किसी भी तरह का सरकारी नियंत्रण नहीं होना चाहिए।
हालांकि कुछ लोग इस संबंध में विरोधी विचार भी रखते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि इंटरनेट धोखाधड़ी आदि को बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभा रहा है। फिलवक्त भारत में एक करोड़ 86 लाख से अधिक लोगों के पास इंटरनेट कनेक्शन है। ग्रामीण दूरसंचार नेटवर्क के विस्तार पर यूनिवर्सल सर्विस फंड यानि यूएसएफ से जुटाए गए कोष से 15 हजार करोड़ का निवेश किया जाएगा। 2012 तक देश की ढ़ाई लाख ग्रामपंचायतें इंटरनेट से जुड़ जाएंगी। इंटरनेट लोकतंत्र की नींव मजबूत करने में ज्यादा से ज्यादा किया जा सकेगा यदि इसके उपयोग को मौलिक अधिकारों में शामिल कर लिया जाए। भारत के लिए यही सबसे अधिक उपयुक्त समय है।
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