सच्चाई और कठिनाई का साथ... 'चोली दामन' का है!
इतिहास के मध्यकाल की बात है। जब समाज में में तरह-तरह की बुराइयां बढ़ रही थीं। समाज में नैतिकता और इंसानियत का दिनोंदिन पतन होता जा रहा था। राजतंत्र भ्रष्टाचारियों और विलासियों के हाथ की कठपुतली बन गया था। ऐसे में एक संत ने समाज सुधार का कार्य प्रारंभ किया। कुछ लोगों ने साथ दिया तो कुछ विरोधी भी हो गए। यहां तक समाज के कुछ भ्रष्ट लोगों ने उन संत के चरित्र को ही बदनाम करने की अफवाहें फेलाना शुरु कर दिया।
समाज में उन संत की बुराईयां सुनकर उनके शिष्य को बुरा लगा। शिष्य ने जाकर अपने गुरु से कहा कि गुरुदेव! आप तो भगवान के इतने करीब हैं, उनसे कहकर आपके बारे में हो रहे दुष्प्रचार को बंद क्यों नहीं करवा देते? जिन लोगों के लिये आप इतना कुछ कर रहे हैं उन्हें इसकी कद्र ही नहीं मालुम तो ऐसे लोगों के लिये समाज सुधार का काम करना ही बेकार है।
शिष्य की बातों को सुनकर वे संत मुस्कुराते हुए बोले- बेटा! तुम्हारे प्रश्र का जवाब में अवश्य दूंगा लेकिन पहले तुम यह हीरा लेकर बाजार जाओ, और शब्जी बाजार तथा जोहरी बाजार दोनों जगह जाकर इस हीरे की कीमत पूछ कर आओ। कुछ समय बाद शिष्य बाजार से लौटा और बोला- शब्जी बाजार में तो इस हीरे को कोई 1 हाजार से अधिक में खरीदने के लिये तैयार ही नहीं था, जबकि जौहरी बाजार में इस हीरे को कई जोहरी लाखों रुपये देकर हाथों-हाथ खरीदने के लिये तैयार थे।
संत हंसते हुए बोले- बेटा! तुमने जो प्रश्र पूछा था उसका सही जवाब इसी घटना में छुपा हुआ है। बेटा! अच्छे कार्य भी हीरे की तरह अनमोल होते हैं, लेकिन उनकी कीमत जौहरी के जैसा कोई पारखी श्रेष्ठ सज्जन व्यक्ति ही जान पाता है। साधारण इंसान अच्छे कर्मों की अहमियत नहीं जान पाते तथा बुराई के रास्ते पर चलने वाले लोग तो अच्छे कार्य करने वाले इंसान को अपना दुश्मन समझकर उसकी झूठी आलोचना या बुराई ही किया करते हैं।
... संत द्वारा अपने शिष्य को कही यह गहरी बात हमें भी हमेशा याद रखना चाहिये कि जब हम कुछ अच्छाई और सच्चाई का कार्य करने निकलें तो लोगों की निंदा की बिल्कुल भी परवाह नहीं करना चाहिये।
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