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27 जुलाई 2011

प्रशासन मंजूरी दे, हम खर्च करेंगे कबूतरों के लिए


 
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कोटा नए कोटा में रहते हुए भी मैं 5 साल से बैराज पर मॉर्निग वॉक पर जा रहा हूं। वहां कबूतरों से काफी लगाव हो गया है। मुझसे से भी काफी समय पहले से कई लोग वहां लगातार आ रहे हैं, कबूतरों के साथ हम-सबका एक अजीब सा रिश्ता बन गया है। अगर दानों के कारण चूहों की समस्या है तो चूहों को भगाने के लिए जो मदद चाहिए हम तैयार हैं, बस इन कबूतरों को वहां से मत जाने दीजिए।



वैसे ही पूरा शहर बदल रहा है, इसमें कुछ तो पुराना रहने दीजिए। भास्कर के मंगलवार को प्रकाशित ‘प्लीज! हमारा भी पुनर्वास करो’ खबर पढ़ने के बाद यह अपील सिर्फ जवाहर नगर के ट्रांसपोर्ट व्यवसायी जगदीश जोशी की नहीं बल्कि उन सभी पक्षी प्रेमियों की है, जिनका दिल नहीं चाहता कि महज चूहों के कारण बैराज पर 50 साल से आ रहे कबूतरों का दाना बंद कर दिया जाए। उन्होंने कहा कि प्रशासन व सिंचाई विभाग की स्वीकृति मिले तो कबूतरों के स्थान पर वे और उनके साथी कोटा स्टोन लगा देंगे, ऊंचा प्लेटफार्म बनाकर जालियां लगा देंगे। चूहों का आना भी बंद कर देंगे। बैराज में जो बिल है उन्हें भी बंद करवा देंगे। रोज शाम को वहां सफाई करवा देंगे ताकि चूहों के लिए कुछ बचे ही नहीं। हमारी पूरी टीम इसके लिए लिखकर देने को तैयार है, हमें सिर्फ प्रशासन की हामी चाहिए। ज्वेलर भीमराज सोनी का कहना था कि गणोश जी के मंदिर नीचे खाली पड़ी जगह के लिए अगर सांसद अनुमति देते हैं तो हम वहां बरामदा बना देंगे और कबूतरों को शिफ्ट कर सकते हैं। कितने ही लोगों को आत्महत्या से बचाया सकतपुरा के नरोत्तम नागर ने कहा कि वे और उनके बच्चे यहीं खेलकूद कर बड़े हुए हैं। 20 साल से यहां चने व दाने बेच रहे लोग ही असल में बैराज के रखवाले हैं उनकी नजर में सारे लोग रहते हैं। बैराज में आत्महत्या का प्रयास करने के मानस आए कई लोगों को उन्होंने समझाया है। आज उनके ही रोजगार पर संकट आ गया है। इसी तरह महुआ पीपलखेड़ा के रुफी शरोधी, कोचिंग स्टूडेंट गौतम, इंद्रविहार के संतराम, सकतपुरा के किराणा व्यवसायी लोकेश कंवर, मिर्जा अफसर बैग तथा शास्त्रीनगर दादाबाड़ी के अजय गुप्ता (30 साल से दान डालने वाले) सहित कई लोग कबूतरों की विदाई के खिलाफ है।
 

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