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18 जुलाई 2011

सुप्रीम कोर्ट में तो जीत गए मगर सिस्टम ने हरा दिया

सुप्रीम कोर्ट में तो जीत गए मगर सिस्टम ने हरा दिया


 
 
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जयपुर। रोडवेज के अफसर करीब सालभर से यह नहीं सोच पा रहे कि आखिरकार एक परिचालक को सेवानिवृत्ति लाभ कैसे दिया जाए। इस परिचालक को एक मामले में दोषी मानते हुए 1976 में हटा दिया गया था। परिचालक को एक के बाद एक कानूनी लड़ाई लड़ते हुए नौकरी बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़ा। आखिरकार 34 साल बाद कोर्ट ने उसके पक्ष में फैसला सुना दिया। लेकिन तब तक उनकी उम्र 63 साल की हो गई।

अब रोडवेज अफसरों की ओर से इस परिचालक के सेवानिवृत्ति के बाद जो लाभ मिलते हैं, उनके लिए लगातार इधर से उधर दौड़ाया जा रहा है। दरअसल अब जिम्मेदार इस बात का हल नहीं निकाल पा रहे हैं कि 34 साल नौकरी से अलग रहे इन परिचालक को अब नौकरी और सेवानिवृत्ति का कितना लाभ दिया जाए।

डीबी स्टार को जानकारी मिली कि रोडवेज ने 1976 में वैशाली नगर आगार में तैनात परिचालक कुंज बिहारी शर्मा को टिकटों में हेरफेर के कारण नौकरी से हटा दिया। परिचालक ने खुद को पाकसाफ बताते हुए अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की कोर्ट में चुनौती दी। न्यायालय ने 92 में कुंज बिहारी के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उसे नियमित सेवा में रहने का हकदार बताया। साथ ही रोडवेज को सभी सेवा लाभ देने का आदेश दिया। रोडवेज ने अपर जिला न्यायालय में अपील की, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया। इसके बाद रोडवेज ने उच्च न्यायालय में अपील की। यहां भी न्यायालय ने रोडवेज की याचिका खारिज कर दी, इसके बाद परिवहन निगम ने सुप्रीम कोर्ट जाने का निर्णय किया।

काम नहीं आई राहत

मामला सुप्रीम कोर्ट में गया तो वहां से यह याचिका उच्च न्यायालय को भिजवा दी। उच्च न्यायालय ने 2002 में अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के निर्णय को अपास्त कर दिया। कुंज बिहारी ने इस फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील की। याचिका स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने प्रकरण को उच्च न्यायालय को भेज दिया। उच्च न्यायालय ने इस बार कुंज बिहारी के पक्ष में फैसला सुना दिया। ऐसे में रोडवेज एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट गई, जहां जुलाई 10 में निगम की याचिका खारिज हो गई।

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