इससे पहले 8 जुलाई को बेंगलुरु में उन्होंने घोषणा की थी कि सरकार स्कूलों में 'भगवत गीता' की शिक्षा को आवश्यक करने के लिए तैयार है, लेकिन उच्च शिक्षा मंत्री वी. एस. आचार्य ने यह कहते हुए कागेरी के इस बयान का बचाव किया था कि इसे धार्मिक शिक्षा के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।
सरकार के इस प्रयास को शिक्षा का 'साम्प्रदायीकरण' करार देते हुए कर्नाटक हाई कोर्ट में 14 जुलाई को एक याचिका भी दायर की गई, जिस पर अदालत ने राज्य और केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। कागेरी ने यह कह कर स्कूलों में गीता पढ़ाने के कार्यक्रम को सरकार द्वारा समर्थन देने के फैसले का बचाव किया है कि यह शिक्षा स्कूल समाप्त होने के बाद दी जाती है और पूरी तरह ऐच्छिक है। साथ ही सरकार न तो इसे आयोजित कर रही है और न ही इसे वित्तीय मदद दे रही है, बल्कि सरस्वती स्वामी के कार्यक्रम को बस समर्थन दे रही है, लेकिन इसे लेकर विवाद थमता नजर नहीं आ रहा।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) की छात्र इकाई भारतीय छात्र संघ (एसएफआई) के सदस्यों ने 6 जुलाई को कोलार में छात्रों को गीता का पाठ पढ़ाने के लिए आयोजित सरस्वती स्वामी के कार्यक्रम के विरोध में रैली भी निकाली। इस दौरान कोलार इकाई के एसएफआई अध्यक्ष वी. अम्बरीश को गिरफ्तार कर लिया गया और 5 दिन बाद जमानत पर रिहा गया।अम्बरीश ने सरस्वती स्वामी पर आरोप लगाया कि 6 जुलाई को कोलार में निषेधाज्ञा लागू होने के बावजूद उन्होंने सभा की। एसएफआई का कहना है कि वह 2007 में इसे शुरू किए जाने के समय से ही इसका विरोध कर रहा है।
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