सिक्के
चवन्नी अठन्नी कलदार
जितने भी हो
खनखनाते हैं
वोह हैं आवाज़ कर
इसका एहसास दिलाते हैं
गिनती में फिर भी वोह
बहु बहुत कम हुआ करते है
लेकिन
रूपये चाहे एक के हों
चाहे सो के ,पांच सो के,हजार के
सभी लाखों करोड़ों के नोट होने पर भी
न आ जाने क्यूँ खामोश
आपके साथ आ जाते हैं
चले जाते हैं
सोच लो
एक आवाज़ जो कहती है
थोथा चना
बजे घना ....................................अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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