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06 जुलाई 2011

राजस्थान सरकार कोटा की जनता के सब्र का इम्तिहान ना ले और ऐसे बदतमीज़ पुलिस अधिकारियों को कोटा से हटा दे

Hi Akhtar Khan,   दोस्तों कोटा राजस्थान में तेनात एक आई पी एस अपनी वर्दी के नशे में इतने चकना चूर हो गए है के वोह मरकने बेल की तरह जिसको चाहे उसे मरने के लियें निकल पढ़े हैं कई जन प्रतिनिधि और पत्रकार उनकी बदतमीज़ी के शिकार हो गए है ..गृह मंत्री के इस कोटा शहर में ऐसा पहली बार हुआ है जब सडकों पर किसी पुलिस अधिकारी का आतंक हो ..पंकज चोधरी आई पी एस ने कल राजस्थान पत्रिका के राजेश तिरपाठी जो काफी सुलझे हुए व्यक्तित्व के है उनके साथ अभद्रता कर दी तो समझ लीजिये के ऐसे अधिकारी को कोटा रहने का कोई हक नहीं बचा है ..राजस्थान पत्रिका का चाहे निजी हित के कारण ऐसे अधिकारीयों से कोई गुप्त समझोता हो जाये लेकिन जनता के हित में तो ऐसे अधिकारीयों का कोटा से कृष्ण मुख होना ज़रूरी है वरना कोटा की जनता जितना सब्र करना  जानती है उतना ही बेसब्री होने के बाद अधिकारियों की बेहद बेक़द्री करती है इसलियें वक़्त से पहले ही राजस्थान सरकार को इस मामले में खुद की इन्तिलिजेंस सर्विस से जानकारी लेकर इस मुसीबत से छुटकारा लेना चाहिए और फुल मोहमद सी आई को ज़िंदा जला देने  जेसी घटनाओं से बचने के लियें सर्कार को बहुत बहुत अहतियात की जरुररत है ....इस मामले में कल की घटना पर मेरे अनुज भाई रमेश चन्द्र सिरफिरा  जी ने  अपने उद्गार प्रकट किये हैं जो साथ में पेश हैं ..........................अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान 

Ramesh Kumar Sirfiraa commented on your note "'एनकाउंटर' की धमकी".
Ramesh Kumar wrote: "आजकल पुलिस द्वारा पत्रकारों के साथ किये जा रहे दुर्व्यवहार के समाचार बहुत सुनने को मिल रहे हैं, पुलिस अधिकारी अपनी दुश्मनी निकालने के कहीं-कहीं पर फर्जी केसों में फंसा रहे हैं या अवसर मिलने पर एनकाउन्टर करने की धमकी दे रहे हैं. मेरे विचार में उपरोक्त घटना में अगर आईपीएस अधिकारी पंकज चौधरी दोषी साबित होते हैं.तब इनसे शरीर पर खाकी वर्दी पहनने का अधिकार वापिस ले लेना चाहिए. इससे पुलिस अधिकारीयों यह अहसास हो जाए कि-यह खाकी वर्दी का ही सम्मान करते हैं और इसकी साफ़-सफाई का खर्च भी जनता की जेब से आता है. अगर तुम्हारा व्यवहार जनता के प्रति ठीक नहीं होगा तब तुम्हारा अंजाम भी यहीं होगा. अगर "कोटा", राजस्थान, राजस्थान पत्रिका और पूरे देश के पत्रकार यह न करें. तब उनकी सच्ची पत्रकारिता पर लानत है.जब तुम अपने भाई कहूँ या परिवार के एक सदस्य के लिए नहीं लड़ सकते हो. तब "आम-आदमी" के लिए क्या खाक लड़ोंगे? यह मत देखो कि-यह उस "दल" के लिए, यह उस "दल" के लिए लिखता है और यह पागल "सिरफिरा" तो आम आदमी के लिखता है. आज पत्रकारों को अपना स्वार्थ छोड़कर एवं भौतिक वस्तुओं का मोह त्यागकर देश व समाज के साथ ही आम-आदमी के प्रति हो रहे अन्याय के खिलाफ एक "जन आंदोलन" चलाने की आवश्कता है. मेरे कुछ पत्रकारिता के नाम पर वेश्यावृति करने वाले पत्रकार भाइयों से निवेदन है कि-मेरे भाई जब आप अपना स्वार्थ एवं भौतिक वस्तुओं का मोह ही नहीं त्याग कर सकते हो.तब ज़माने में बहुत से "काम" है करने को. फिर क्यों इस सम्मानजनक "पत्रकारिता" को बदनाम करते हो? पैसा तो एक वेश्या भी कमाती हैं लेकिन बदनाम होकर.क्या हम उस वेश्या से गए गुजरे है? क्या हम ऐसा करके "आम-आदमी" के अधिकारों और देश की इज्जत नहीं बेच रहे हैं? मत बेचों मेरे दिशाहीन पत्रकार भाइयों इस देश की इज्जत को.मेरे विचार में जो सत्य लिखने से डरते हैं,वह मृतक के समान है. और फिर मत भूलो कि-गगन बेच देंगे, पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे! कलम के सिपाही गर सो गए तो वतन के मसीहा "वतन"बेच देंगे!!"

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