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07 जुलाई 2011

2जी घोटाला: इन 3 अफसरों के चलते गई मारन की कुर्सी!

2जी घोटाला: इन 3 अफसरों के चलते गई मारन की कुर्सी!

 
 
नई दिल्ली. टेलीकॉम कंपनी के तीन अफसरों के सीबीआई को दिए बयान पूर्व दूरसंचार मंत्री दयानिधि मारन के ताबूत में अंतिम कील साबित हुए। एक रिटायर्ड और दो वर्तमान अफसरों ने पिछले सप्ताह सीबीआई को दिए बयान में एयरसेल के पूर्व डायरेक्टर सी शिवशंकर के बयान की पुष्टि की कि मारन ने कंपनी को परेशान किया और जानबूझकर उन्हें करीब दो साल तक स्पेक्ट्रम आवंटन और अतिरिक्त लायसेंस नहीं दिए जबकि इन अफसरों ने उन्हें ऐसा करने से रोका भी था।
मारन यूपीए के पहले कार्यकाल में २००४ से २००७ तक दूरसंचार मंत्री थे। ये तीनों अफसर मारन के कार्यकाल में विभाग में उच्च पदों पर थे।
इन अफसरों के बयानों के आधार पर ही सीबीआई प्राथमिक जांच रिपोर्ट को एफआईआर में तब्दील करने जा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने इस साल जनवरी में सीबीआई को २जी स्पेक्ट्रम आवंटन की जांच का दायरा बढ़ाने को कहा था और २००१ से २००६ के बीच स्पेक्ट्रम आवंटन को लेकर हुई विभागीय गतिविधियों की भी जांच के आदेश दिए थे। अब सीबीआई जल्दी ही मारन से पूछताछ करेगी।
सीबीआई के वरिष्ठ अफसरों ने संकेत दिए हैं कि वे मारन को नोटिस भेज रहे हैं, जिसमें उनसे पूछताछ के लिए अगले सप्ताह उपलब्ध रहने को कहा जाएगा। अब मारन मंत्री नहीं हैं इसलिए इसके लिए सरकार से इजाजत लेने की कोई आवश्यकता नहीं है।
सीबीआई के सूत्रों के अनुसार मारन के खिलाफ १ फरवरी २००४ से ३० मार्च २००५ के बीच विभाग के सचिव रहे नृपेंद्र मिश्रा, जॉइंट वायरलेस एडवाइजर रामजी सिंह कुशवाहा और और उस समय सीनियर डिप्टी डायरेक्टर जनरल रहे पीके मित्तल के बयान काफी अहम साबित हुए हैं।
मारन ने स्पेक्ट्रम पर कैबिनेट को भी अंधेरे में रखा
इसी बीच खुलासा हुआ है कि दयानिधि मारन ने अपने कार्यकाल में दूरसंचार के लिए बनी कैबिनेट उप समिति को भी स्पेक्ट्रम की कीमतों के मुद्दे पर अंधेरे में रखा। वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने २जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच कर रही संयुक्त संसदीय समिति को बताया है कि मारन ने  दूरसंचार पर बने मंत्री समूह में भी इस मुद्दे पर चर्चा नहीं होने दी। तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने उस समय इस पर आपत्ति उठाते हुए कहा था कि पहले इस मुद्दे को मंत्रियों के समूह के सामने रखा जाए और फिर कैबिनेट से पारित कराया जाए। लेकिन मारन इसके लिए कतई तैयार नहीं हुए। मारन का तर्क था कि स्पेक्ट्रम की कीमत निर्धारित करना विभाग का काम है और कैबिनेट का इसमें हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।
कमेटी के चेयरमैन पीसी चाको ने यह जानकारी देते हुए बताया कि इस मुद्दे पर दोनों विभागों के बीच पत्र व्यवहार भी हुआ, लेकिन मारन अपनी जिद पर अड़े रहे।

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