आपका-अख्तर खान

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12 जून 2011

ऐसा क्या है तुझ में ....

तू ही बता 
ऐसा क्या है तुझ में 
रोज़ सुबह शाम 
बस 
तुझे ही 
भुलाने की 
कोशिशों में 
लगा हूँ 
लेकिन ना जाने क्यूँ 
तुझे भूल नहीं पाटा हूँ 
जब भी 
होले से 
मूंद लेता हूँ 
यह कमबख्त आँखे 
बस तुझे ही 
इन आँखों में 
पाता हूँ ...
इसीलियें तो 
जब तुने 
यूँ ही 
मुस्कुरा कर 
मेरे साथ 
आने से इंकार कर दिया 
मेने सोच लिया है 
बस अब में 
तुझे 
अपनी आँखों में 
सजोये रखने के लियें 
हमेशा के लियें ही 
अपनी आँखे 
अपनी साँस 
अपनी धडकन 
बंद कर लूँगा 
ताकि तू 
कमसे कम इस तरह तो 
आखरी लम्हों में 
हमेशा मेरे साथ 
मेरी आस बनी रहे .................
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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