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12 जून 2011

चिलमन के पीछे से ...

चिलमन के पीछे से ...
उन्होंने 
अपनी बारीक़ 
खुबसूरत 
अँगुलियों से 
मुझे यूँ 
नजाकत से 
इशारा कर बुलाया ..
में बदहवास सा 
यह सोचकर 
शायद मुझे भी 
कोई चाहने लगा है 
जब चिलमन के 
पीछे गया 
तो वहा 
एक खुबसूरत 
अदाकारा ने 
मुझ से कहा 
बस यूँ ही 
तुमसे खेलने को मन किया 
और तुम्हें बुला लिया 
लेकिन अब 
तुम्हारी ज़रूरत नहीं 
मुझे तुमसे बहतर 
तुमसे अच्छा 
खिलौना खेलने के लियें 
मिल गया है .....
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

1 टिप्पणी:

  1. Nice post.
    आज आदमी बीमार नहीं है र्बिल्क ‘फ़ूड प्रूविंग‘ का शिकार है। यह मेरा अनुसंधान है। मैं इस सब्जेक्ट पर एक किताब भी लिखने वाला था लेकिन हिंदी ब्लॉगिंग में आ फंसा।
    मालिक ने बंदों को सेहतमंद रखने के लिए ही उसे मेहनत करने का हुक्म दिया और इसीलिए उसने अलग अलग मौसम में अलग अलग फ़सलें बनाईं। हरेक मौसम में इंसान की ज़रूरत उसी मौसम के फल सब्ज़ी आदि के ज़रिए पूरी होती हैं। हमारा आहार ही हमारे लिए बेहतरीन औषधि है लेकिन हमने अपनी नादानी की वजह से अपने आहार को आज अपने लिए ज़हर बना लिया है।
    यह ज़हर इतना है कि इसे लैब में भी टेस्ट कराया जा सकता है। सब्ज़ी, दूध-पानी, मिट्टी और हवा हर चीज़ को ज़हरीला बनाने वाले हम ख़ुद ही हैं और फिर मौसम चक्र का उल्लंघन करके मनमर्ज़ी भोजन करने वाले नादान भी हम ही हैं। अगर हम अपनी ग़लती महसूस करें और तौबा करके अपने खान-पान को मौसम के अनुसार कर लें तो हम अपनी बीमारियों से मुक्ति पा सकते हैं।
    भारतीय आयुर्वेदाचार्यों ने इस संबंध में बेहतरीन उसूल दिए हैं:
    मिसाल के तौर पर उन्होंने कहा है कि
    1. हितभुक 2. मितभुक 3. ऋतभुक
    अर्थात हितकारी खाओ, कम खाओ और ऋतु के अनुकूल खाओ।
    हमें अपने महान पूर्वजों की ज्ञान संपदा से लाभ उठाना चाहिए।
    http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/06/blog-post_3631.html

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