यह चमन के अजीब फूल .......
होते हैं
पतझड़ हो अगर
तो वीराने से चमन में
बस यूँ ही
इधर उधर
आँधियों के साथ
बिखरते हैं ..
खुशनुमा हो मोसम अगर
तो यही फूल
चमन में कभी खुशबु
तो कभी
खुशिया बिखेरते है
इसलियें कहता हूँ
ना चमन का अपना मुकाम है
ना गुल का
अपना कोई अहतराम है
यह तो बस
खुदा है
वोह चाहे जिसको देता इनाम है
इसीलियें ना गुल
इतराए अपनी खुशहाली पे
न तितली इठलाये
गुल के मधुरस में
यह तो खुदा है
जिसे चाहे जंगल बना दे
जिसे चाहे सहरा बना दे
जिसे चाहे गुलशन बना दे
इसीलियें
मेरा जो भी बिगड़ा हाल है
तेरा जो भी सुधरा हाल है
ना इतर इसपर तू
ना जाने कब में तू और तू में हो जाऊं .....................अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
bhut hi pyari rachna...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना क्या गुल क्या तितली का उदाहारण अच्छा लगा , आभार
जवाब देंहटाएंsunderpratuti
जवाब देंहटाएंbadhiya , pasand aaya ..
जवाब देंहटाएं