कोटा। कुछ माह पहले मरणासन्न अवस्था में स्वयं को एक कमरे में सीमित कर देने वाले एक युवक ने अपने हौसले से न केवल घातक टीबी (मिलीयरी ट्यूबरक्लोसिस) बल्कि इसी दौरान हुए पैरालिसिस अटैक को भी हरा दिया।
अब वह न केवल खुद चलकर अस्पताल जाता है, बल्कि उसकी जिंदगी के प्रति नई सोच लोगों को भी नई ऊर्जा देती है। हालांकि इसे पूरे मामले में उसके मोहल्लेवालों तथा निर्धन रोगी उपचार प्रकल्प संस्था का भी विशेष सहयोग रहा, जिन्होंने उसके उपचार में अहम भूमिका निभाई। जीवन-संघर्ष की यह दास्तां है कैथूनीपोल के रेतवाली निवासी 25 वर्षीय सुदामा केसवानी की।
कुछ माह पूर्व वह घातक टीबी (मिलीयरी ट्यूबरक्लोसिस) से पीड़ित था। यह बीमारी रक्त के साथ-साथ उसके पूरे शरीर में फैल रही थी। दो वक्त का खाना तक नसीब नहीं हो रहा था। पिता का साया बचपन में ही उठ चुका था।
मां देख-सुन नहीं सकती थी। अपनी वृद्ध मां के साथ वह कोठरीनुमा कमरे में मौत की घड़ियां गिन रहा था। उसी दौरान मोहल्ले के कुछ युवक उसके मदद के उम्मीद में 5 जनवरी की रात को ‘भास्कर कार्यालय’ पहुंच गए।
भास्कर ने उसे एमबीएस में भर्ती करवाया और निर्धन रोगी उपचार प्रकल्प संस्था के संभागीय संयोजक पंडित अनिल औदिच्य को सूचित किया। रात को ही औदिच्य अपनी टीम व पड़ोसी युवाओं के साथ अस्पताल पहुंच गए।
इसके बाद संस्था ने न केवल उपचार की, बल्कि दोनों मां-बेटों के भोजन, दवाइयां, जांच आदि सभी काम जनसहयोग से करवाए। उन्होंने एक टीम बनाई और टाइम टेबल बनाकर 8-8 घंटे अस्पताल में उसकी देखरेख भी की। 15 दिन तक सुदामा आईसीयू में भर्ती रहा।
जहां फिजिशियन मीनाक्षी शारदा व डॉ. मनोज सलूजा ने उसका उपचार किया।
मेडिकल वार्ड में करीब 1 माह तक भर्ती रहने के बाद फरवरी में उसे छुट्टी मिल गई। संस्था के कार्यकर्ताओं ने उसके घर पर किराने के सामान व दवाइयों की व्यवस्था की। लोगों के मदद से सुदामा में जिंदगी के प्रति जज्बा जाग उठा था। लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था।
अभी वह पूरी तरह से स्वस्थ होता उससे पहले ही उसे पैरालिसिस अटेक हो गया। एक बार फिर संस्था ने उसे अस्पताल में भर्ती करवाया और पुन: इलाज शुरू करवाया। लेकिन इस बार जीत उसकी जिंदादिली की हुई। आज सुदामा पूरी तरह से स्वस्थ हो गया और अब रूटीन चेकअप के लिए खुद अस्पताल पहुंच जाता है।
‘जब सुदामा हमारे पास आया था तब उसे तेज बुखार था और गेहूं से बना कुछ भी उसे पच नहीं पा रहा था। उसे मिलीयरी ट्यूबरक्लोसिस नामक बीमारी थी। जो रक्त के साथ-साथ तेजी से पूरे शरीर में फैलती है। लंबे उपचार के बाद अब वह स्वस्थ है। उसका उपचार अभी भी जारी है।""
-डॉ. मीनाक्षी शारदा, एसोसिएट प्रोफेसर, मेडिसिन विभाग एमबीएस
इनकी मेहनत रंग लाई
सुदामा को नया जीवन देने में पंडित अनिल औदिच्य, उसके पड़ोसी हरीश कुमार व लीला राम, संस्था के सदस्य लक्की सोनी, प्रदीप सोरल, पीयूष सोनी, राजेन्द्र दाधीच व गोपाल नामा की मेहनत रंग लाई। अस्पताल में संस्था के प्रेरक पूर्व मंत्री ललित किशोर चतुर्वेदी ने भी उससे कई बार मुलाकात की और डाक्टरों से वार्ता कर उसके उपचार पर नजर रखते रहे।
अब वह न केवल खुद चलकर अस्पताल जाता है, बल्कि उसकी जिंदगी के प्रति नई सोच लोगों को भी नई ऊर्जा देती है। हालांकि इसे पूरे मामले में उसके मोहल्लेवालों तथा निर्धन रोगी उपचार प्रकल्प संस्था का भी विशेष सहयोग रहा, जिन्होंने उसके उपचार में अहम भूमिका निभाई। जीवन-संघर्ष की यह दास्तां है कैथूनीपोल के रेतवाली निवासी 25 वर्षीय सुदामा केसवानी की।
कुछ माह पूर्व वह घातक टीबी (मिलीयरी ट्यूबरक्लोसिस) से पीड़ित था। यह बीमारी रक्त के साथ-साथ उसके पूरे शरीर में फैल रही थी। दो वक्त का खाना तक नसीब नहीं हो रहा था। पिता का साया बचपन में ही उठ चुका था।
मां देख-सुन नहीं सकती थी। अपनी वृद्ध मां के साथ वह कोठरीनुमा कमरे में मौत की घड़ियां गिन रहा था। उसी दौरान मोहल्ले के कुछ युवक उसके मदद के उम्मीद में 5 जनवरी की रात को ‘भास्कर कार्यालय’ पहुंच गए।
भास्कर ने उसे एमबीएस में भर्ती करवाया और निर्धन रोगी उपचार प्रकल्प संस्था के संभागीय संयोजक पंडित अनिल औदिच्य को सूचित किया। रात को ही औदिच्य अपनी टीम व पड़ोसी युवाओं के साथ अस्पताल पहुंच गए।
इसके बाद संस्था ने न केवल उपचार की, बल्कि दोनों मां-बेटों के भोजन, दवाइयां, जांच आदि सभी काम जनसहयोग से करवाए। उन्होंने एक टीम बनाई और टाइम टेबल बनाकर 8-8 घंटे अस्पताल में उसकी देखरेख भी की। 15 दिन तक सुदामा आईसीयू में भर्ती रहा।
जहां फिजिशियन मीनाक्षी शारदा व डॉ. मनोज सलूजा ने उसका उपचार किया।
मेडिकल वार्ड में करीब 1 माह तक भर्ती रहने के बाद फरवरी में उसे छुट्टी मिल गई। संस्था के कार्यकर्ताओं ने उसके घर पर किराने के सामान व दवाइयों की व्यवस्था की। लोगों के मदद से सुदामा में जिंदगी के प्रति जज्बा जाग उठा था। लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था।
अभी वह पूरी तरह से स्वस्थ होता उससे पहले ही उसे पैरालिसिस अटेक हो गया। एक बार फिर संस्था ने उसे अस्पताल में भर्ती करवाया और पुन: इलाज शुरू करवाया। लेकिन इस बार जीत उसकी जिंदादिली की हुई। आज सुदामा पूरी तरह से स्वस्थ हो गया और अब रूटीन चेकअप के लिए खुद अस्पताल पहुंच जाता है।
‘जब सुदामा हमारे पास आया था तब उसे तेज बुखार था और गेहूं से बना कुछ भी उसे पच नहीं पा रहा था। उसे मिलीयरी ट्यूबरक्लोसिस नामक बीमारी थी। जो रक्त के साथ-साथ तेजी से पूरे शरीर में फैलती है। लंबे उपचार के बाद अब वह स्वस्थ है। उसका उपचार अभी भी जारी है।""
-डॉ. मीनाक्षी शारदा, एसोसिएट प्रोफेसर, मेडिसिन विभाग एमबीएस
इनकी मेहनत रंग लाई
सुदामा को नया जीवन देने में पंडित अनिल औदिच्य, उसके पड़ोसी हरीश कुमार व लीला राम, संस्था के सदस्य लक्की सोनी, प्रदीप सोरल, पीयूष सोनी, राजेन्द्र दाधीच व गोपाल नामा की मेहनत रंग लाई। अस्पताल में संस्था के प्रेरक पूर्व मंत्री ललित किशोर चतुर्वेदी ने भी उससे कई बार मुलाकात की और डाक्टरों से वार्ता कर उसके उपचार पर नजर रखते रहे।
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