जिंदगी के इन्तिज़ार में
अपने हाथों की
इन लकीरों को
में तकदीर समझ कर
मुट्ठियाँ बंद कर
जिंदगी के इन्तिज़ार में
बेठा रहा
और जिंदगी थी
के बस
प्लेटफोर्म से
ट्रेन निकलती है जेसे
ऐसे धीरे धीरे खिसकती रही .............
और यूँ ही तकदीर के इन्तिज़ार में
सिसकती रही
शायद इसीलियें तो
लोग कहते हैं
जिंदगी तकदीर नहीं तदबीर है .................अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
लेकिन कुछ है जिन्दगी में
जवाब देंहटाएंजो समय के साथ नहीं गुजरता.. लकीरों पर नहीं चलता और बाकी सारी मशीनी जिन्दगी से जुदा होता है। क्या आपको नहीं जानना कि वो क्या है ?
बहुत बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंek sunder seekh deti prabhavshali rachna.
जवाब देंहटाएंज़िंदगी यूँ ही सरकती चली जाती है ..अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशायद इसीलियें तो
जवाब देंहटाएंलोग कहते हैं
जिंदगी तकदीर नहीं तदबीर है ...
bahut sateek baat ...
badhaii.