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04 जून 2011

ताकि कभी दूर न रहे सागर से पानी

कोटा. शहर का हृदयस्थल कहे जाने वाले किशोरसागर को सही तरीके से विकसित कर साल भर लबालब रखा जाए तो इससे न केवल शहर की खूबसूरती बढ़ेगी बल्कि शहर के पर्यावरण में भी ठंडक आ सकती है। जब इतनी बड़ी मात्रा में पानी एकत्रित रहेगा तो साल दर साल बढ़ते तापमान में भी अपेक्षाकृत कमी आ सकती है।

इतना कुछ हुआ तो फिर पर्यटक अपने आप यहां खिंचे चले आएंगे, जिससे यहां पर्यटन इंडस्ट्री में बूम आ सकता है। आज विश्व पर्यावरण दिवस है। कोटा का पर्यावरण, पर्यटन व प्रसिद्धि किशोर सागर व जग मंदिर से जुड़ी हुई है। यह कोटा की लाइफ लाइन साबित हो सकता है बशर्ते इस सागर को फिर से किशोर बनाकर विकसित कर दिया जाए और किसी भी सूरत में इसे कचरा पात्र न बनाए। किशोर सागर को अब तक केवल एक सूखे तालाब के रूप में देखा जाता है जबकि, इसे संवारकर शहर का पर्यावरण व पर्यटन दोनों पटरी पर आ सकते हैं। शहर के बीचों-बीच स्थित होने के कारण इससे शहर का हर व्यक्ति का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ाव है।

3 किमी में बढ़ेगा जलस्तर: भूजल वैज्ञानिकों के अनुसार इसमें यदि सालभर पानी भरा रहेगा तो आसपास के करीब 3 किलोमीटर क्षेत्र में भूजल स्तर बढ़ जाएगा। मौसम में आद्र्रता बढ़ेगी और आसपास के क्षेत्र में हरियाली रहेगी। इससे शहर का जो तापमान लगातार बढ़ रहा है उससे निजात मिलेगी और ठंडक मिलेगी।

...तो पर्यटन में आएगा बूम: पर्यटन विशेषज्ञों के अनुसार किशोर सागर तालाब का जो फोटो पर्यटन की वेबसाइट पर है उसमें यह काफी खूबसूरत दिखता है, लेकिन जब यहां आकर देखते हैं तो काफी गंदगी नजर आती है। इससे बचाने के लिए काफी प्रयास करने होंगे। यहां सालभर पानी भरा रहना जरूरी है। एक बार यदि यह पुराने स्वरूप में लौट आए तो इसकी बात ही निराली होगी।

झीलों से जिनकी पहचान: श्रीनगर, चंडीगढ़, बैंगलूर, हैदराबाद, भोपाल, माउंटआबू, उदयपुर, जयपुर आदि शहरों की पहचान वहां के सागर और झीलों से ही है। साल भर पानी भरा रहने से इन शहरों में पर्यटक खिंचे चले आते हैं। कोटा में इस ऐतिहासिक धरोहर का बरसों से उपयोग नहीं हो पा रहा है। इसे तालाब की बजाय सागर या झील का रूप दे दिया जाए तो शहर का सौंदर्य खिल उठेगा।

किशोरसागर पर पीएचडी: किशोरसागर पर हाल ही में कोटा की एक छात्रा ने लंबे समय तक शोध किया और पीएचडी की डिग्री हासिल की। शोधकर्ता डॉ. सीमा शर्मा ने अपने शोध में इसे पर्यावरण की दृष्टि से विकसित करने के लिए 3 महत्वपूर्ण सुझाव दिए है। हालांकि इनमें से कुछ सुझावों पर वर्तमान में काम किया जा रहा है।

तीन महत्वपूर्ण सुझाव: ऐसी व्यवस्था की जाए जिससे कि इसमें लोग ठोस कचरा न डाल सके। वर्तमान में जो गंदे नाले तालाब में गिर रहे हैं उन्हें बंद किया जाए और उनका डायवर्जन किया जाए। ठोस कचरा जो इसमें गिर रहा है उसके लिए तालाब में वर्तमान में जो गंदगी है उसे साफ किया जाए। इसमें सालभर पानी भरा रहे इसके लिए सबसे पहले इसके सीपेज को दुरुस्त किया जाए। तालाब से सीपेज खत्म हो जाएगा तो इसमें पानी भरा रहेगा और उसका लाभ पर्यावरण की दृष्टि से पूरे शहर को मिलेगा। जलकुंभी व अन्य जलीय पौधे इसके पानी को दूषित कर रहे हैं, उसे जड़ से साफ करने के लिए पुख्ता व्यवस्था की जाए।

1 किलो कचरे से 400 ग्राम प्रदूषण फैलाता है: किशोरसागर तालाब में यदि हम 1 किलो कचरा एक बार में डालते है तो यह मान लीजिए कि उसमें हम 400 ग्राम सीमेंट डाल रहे हैं। एक किलो कचरे में से 60 प्रतिशत कचरा तो ऐसा होता है जो पानी में घुल जाता है और 40 प्रतिशत कचरा सोलिड होता है जो घुलता नहीं है। इसमें कांच, पॉलीथिन, मेटल आदि कचरा होता है। यह 40 प्रतिशत कचरा उसके तल में जाकर जम जाता है। यह कार्य कई सालों से चल रहा है। अब यदि इस पर रोक लगाई जा रही है तो यह शहरवासियों के ही हित में हैं। - डॉ. प्रहलाद दुबे, पर्यावरणविद

जैसा फोटो वैसा दिखाएंगे स्वरूप: किशोरसागर का फोटो दिखाकर जिन टूरिस्ट को यहां आते थे वे इसका वर्तमान स्वरूप देखकर अपने मन में नेगेटिव धारणा लेकर जाते थे, लेकिन यदि इसका डवलपमेंट हो जाएगा तो इस स्थिति से बचा जा सकेगा। तालाब से टूरिस्ट को कोटा आने में काफी सहयोग मिलेगा। पूरे साल पानी से लबालब इतना बड़ा तालाब, उसके बीच में जगमंदिर और आसपास अथाह हरियाली, इस शहर का स्वरूप ही बदल देगी। - नीरज भटनागर डायरेक्टर हाड़ौती टूरिस्ट

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