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11 फ़रवरी 2011

मदन मदिर जी के दिये की बगावत

कब टक आंसू जलेंगे तेल बनकर
जलेंगी कबतक हताहत बत्तियां
हसेंगी कब तक उधर निर्मम दिवाली
रोयेंगी कब तक यह जर्जर बस्तियां
अगर चाहो बस्तियों का तम निवारण
हर गली को बगावत करना पढ़ेगी
चलेंगे कब तक अभावों के बवंडर
शांति पर कब तक बढ़ेंगे क्रूर खंजर
सत्य होगा पराजित कब तक कपट से
सुहागन कब तक बनेगी धरा बंजर
अगर चाहो बदलना अंधेर शासन
हर गले को बगावत करनी पढ़ेगी ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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