कब टक आंसू जलेंगे तेल बनकर
जलेंगी कबतक हताहत बत्तियां
हसेंगी कब तक उधर निर्मम दिवाली
रोयेंगी कब तक यह जर्जर बस्तियां
अगर चाहो बस्तियों का तम निवारण
हर गली को बगावत करना पढ़ेगी
चलेंगे कब तक अभावों के बवंडर
शांति पर कब तक बढ़ेंगे क्रूर खंजर
सत्य होगा पराजित कब तक कपट से
सुहागन कब तक बनेगी धरा बंजर
अगर चाहो बदलना अंधेर शासन
हर गले को बगावत करनी पढ़ेगी ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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