जब भी
कश्ती मेरी
सेलाब में
आ जाती हे ,
मां ही हे
जो याद आजाती हे
मां ही हे जो
दुआ करती हुई
ख्वाब में
आ जाती हे
क्या सीरत थी
क्या सुरत थी
वोह मां थी
ममता की मूरत थी
देवी ऐसी
के पाँव छुए और काम हुए
वोह अम्मा थी
एक मुहर्त थी ............ ।
भाई अंगद सम्पादक मदन मदिर की लिखित कविता भाव थोड़े बहुत परिवर्तन के साथ । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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