यूँ
सूखे हुए
आंसुओं पर
न जाओ मेरे
कभी हम भी थे
जो हर
रोते हुए को
हंसाया करते थे ,
आज मिल कर उनसे
खुद को भी
मुस्कुराए हुए
बरस हो गये हें ...... ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
05 फ़रवरी 2011
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--इन सूखे आंसुओं पर...
जवाब देंहटाएं--बरस नहीं= बरसों...
बहुत अच्छी रचनात्मक अभिव्यक्ति .बधाई
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