दोस्तों कोटा में कल यानि गुज़रे हुए कल एक फरवरी से मोटर व्हीकल एक्ट के पुरे कानून में से केवल एक अंश यानि दुपहिये वाहन चालकों के लियें हेलमेट नियम लागू किया जाना था बस पुलिस ने कल से सख्ती की जाँच की लम्बी बढ़ी सडकें जहां वहन चालक तेज़ गति से वाहन चला सकता हे वहां हेलमेट चेकिं शुरू की कुछ को रोका कुछ को टोका कुच्छ का चालान बनाया कुछ को घर वापस हेलेम्त लेने के लियें दोड़ाया लेकिन जनता परेशान नहीं हुई पुलिस और जनता की भिडंत नहीं हुई तो फिर अख़बार वाले खासकर दो अखबार भास्कर और पत्रिका जो हेलमेट विक्रेताओं के एजेंन्ट और विज्ञापन दाता हें वोह इस शान्ति पूर्ण व्यवस्था को केसे पसंद करते उन्होंने तो खुद हेलमेट पहने हेलमेट कहां से खरीदे अगर इसकी रसीद उनसे मांगेंगे तो किसी अख़बार वाले के पास नहीं मिलेगी क्योंकि जनता जानती हे उनके पास हेलमेट कहां से केसे और किसलियें आते हें हाँ कुछ साधू पत्रकार हें जो इस खेरात के झंझट से दूर भी रहते हे ।
तो दोस्तों में बात कर रहा था मोटर व्हीकल कानून में से केवल गरीबों दुपहिये वाहन चालकों के खिलाफ लागू किये गये कानून की बस पुलिस ने गलियों में घरों के आस पास दुपहिये वाहनों पर घुमने वालों को छोड़ कर जब व्यवस्था बनाई तो फिर इन अख़बार वालों के पेट में दर्द होने लगा कहते हें पुलिस ने तो गलियों में चलन नहीं बनाये यानि यह हेलमेट के दल्ले चाहते हें के जनता को घर में भी हेलमेट पहनाया जाए घर से बाहर निकलते ही गली में भी हेलमेट पहनाया जाए और इसीलियें आज कोटा में बढ़े अखबार जी पुलिस के खिलाफ गुसे से भरे पढ़े हें लेकिन जनता का कहना हे के कुत्ते भोंकते रहते हें पहले भी कई बार भोंके आज टक तो कुछ हुआ नहीं आगे क्या होगा क्योंकि निस्वार्थ भाव से जो बात लिखी जाए वोह तो लागू होती हे और अगर स्वार्थ भाव से लिखी जाए तो शेम शेम ही होती हे । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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