आपका-अख्तर खान

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19 फ़रवरी 2011

यह क्या माजरा हे .

यह क्या माजरा हे
झगड़ा उनसे हे मेरा
नाम उनका जब आया
तो गर्दन मेरी
शर्म से
क्यूँ झुक गयी हे
यह क्या माजरा हे
गुस्सा उन पर मुझे बहुत हे
फिर यह क्या हे
चारों तरफ खुशबू
उनके प्यार की महक रही हे
यह क्या माजरा हे
बरसों जो नहीं मिलते मुझे
फिर क्यूँ यूँ रोज़
ख़्वाबों में आ रहे हें
यह क्या माजरा हे
रिश्ता जिनसे ना प्यार का ना दुश्मनी का रहा हे
फिर आखिर ख्याल किया हे
जो मुझे फूट फूट कर रुला रहा हे ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

1 टिप्पणी:

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