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08 फ़रवरी 2011

यह सुबह ..

यह सुबह
जो
अंधेरों से भी
बदतर हे
में चाहता हूँ
मेरी जिंदगी में
फिर ना आये
कभी
यह अँधेरे
जिनसे
में घबराता रहा हूँ
अब तो बस
यही मेरे संगी
यही मेरे साथी हे
एक उजालेदार सुबह
जो सिर्फ एक धोखा हे
उससे तो कहीं
ज्यादा बहतर
यही अँधेरे हें
जो सिर्फ और सिर्फ
लोगों की हर बुराइयों को
छुपा लेते हें
एक सच यह भी हे
जो सुबह के
उजालों में
देते हें धोखा
वही लोग
इस रात के अँधेरे में
प्यार ही प्यार
का नाटक कर
यूँ ही
अंधेरों को
बदनाम करते हें ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

1 टिप्पणी:

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