वक्त की आंच में
जलती हुई
आग में
लोहा हो
या हो पत्थर
सभी
पिघल जाते हें
कोन करेगा
हमें याद
वक्त के साथ
ख्यालात भी
बदल जाते हें ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
बहुत सही कहा है आपने...आप का लेख या कविता अमन के पैग़ाम के लिए अभी तक नहीं आयी ? इंतज़ार hai
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