आपका-अख्तर खान

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03 जनवरी 2011

वक्त की आंच में

वक्त की
जलती हुई
आग में
लोहा हो
या हो पत्थर
सभी
पिघल जाते हें
कोन करेगा
हमें याद
वक्त के साथ
ख्यालात भी
बदल जाते हें ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

1 टिप्पणी:

  1. बहुत सही कहा है आपने...आप का लेख या कविता अमन के पैग़ाम के लिए अभी तक नहीं आयी ? इंतज़ार hai

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