लहू लुहान में
खड़ा हूँ
सामने तेरे
आज तू खुद देख ले
ग़लती तेरी
क्या होगी इसमें
नादानी मेरी ही हे
मुझे पता ही नहीं रहा
के कांटे
होते हें
हर
नाज़ुक गुलाब में
यूँ ही
छू लिया हे
तुझे
तो
लहू लुहान तो
रहूँगा ही
प्यार के इस
इस्तेराब में ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
27 जनवरी 2011
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वाह वाह, नाजुक नज्म है।
जवाब देंहटाएंआभार