आपका-अख्तर खान

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16 जनवरी 2011

यह खुशिया ..........

यह खुशियाँ
यह खुशनुमा माहोल
मुझे क्यूँ
बेगाना सा लगता हे
यह अकेलापन
यह अँधेरा
मुझे क्यूँ अपना सा
लगता हे
सोचता हूँ
तो खो जाता हूँ
में
अपने उस अतीत में
जहां मेने
जो कुछ भी पाया था
आज वोह सिर्फ
इस छद्म ख़ुशी के लियें
खो चूका हूँ
और बस इसीलियें
अब डर लगता हे
इन झूंठी खुशियों से
इस झूंठे माहोल से
बस इसीलियें
मुझे अब
अकेला पन और अंधरे रास आ गये हें ।
अख्तर कहां अकेला कोटा राजस्थान

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