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27 जनवरी 2011

पत्नी की मूर्ति कवि पत्रकार पति के आंगन में

जी हाँ दोस्तों राजस्थान के बूंदी जिले में पत्रकारिता की दुनिया में पांव जमाने वाला देनिक अंगद ने कोटा में भी अपना पाँव जमाने की कोशिश की हे जिसे खुदा कामयाब करे लेकिन अंगद के मालिक ने बूंदी या हाडोती या देश भर में बहतरीन मिसाल कायम की हे ।
अंगद के मालिक वरिष्ठ पत्रकार मदन मदिर हें जो दादा मदन मदिर के नाम से विख्यात भी हें और भ्र्स्ताचारियों में खतरनाक लेखन के लियें कुख्यात भी हे दादा मदन मदिर ने पत्रकारिता के इस पढाव में कई सरकारें देखी हें लेकिन इन्होने कोमरेड होने का अपना ठप्पा नहीं बदला वेसे तो दादा मदन मदिर एक अच्छे पत्रकार ,लेखक और कवि तो हे ही लेकिन यह एक अच्छे ही नहीं बहुत अच्छे व्यक्ति,अच्छे पति और पिता भी साबित हुए हे मन से समाजवादी ये दादा मदन मदिर आज भी पत्रकारिता के माध्यम से समाजवाद का ही झंडा बुलंद करते फिरते हें इस मामले में उन्हें कई कठिनाइयों के दोर से भी गुजरना पढ़ रहा हे लेकिन जुझारू संघर्ष शील यह व्यक्तित्व अपने पुत्रों और मित्रों के बल पर हर समस्या पर विजेता रहा हे और आज इसीलियें इनका जीवन अंगद के पाँव की तरह अनुकरणीय बनता जा रहा हे खुद सम्पादकीय लिखने वाले शायद देश के यह निरंतर पत्रकार हें जिनका सम्पादकीय पढने के लियें लोग रोज़ इनितिज़र करते हें ।
जी हाँ दोस्तों रोज़ मर्रा अपने सम्पादकीय में कविता के कुछ शब्दों से शुरू कर समस्या और समाधान का सुझाव गागर में सागर बना कर पेश करने की कला शब्दों के इस जादूगर में हें और लेकिन केवल उम्र के पढाव के लिहाज़ से बूढ़े हो चले यह दादा मदन मदिर अब पत्नी की म्रत्यु के बाद कमजोर से पढ़ गये हें उम्र के पढ़ाव के बुढ़ापे की बात में इसलियें कहता हूँ के बस इन्हें उम्र के कारण ही दादा कहा जा सकता हे लेकिन यह शख्सियत मन कर्म से चंचल और जांबाज़ हे यारों के यार और दुश्मन को छटी का दूध याद दिला कर ज़मीं चटाने वाले यह दादा अपनी पत्नी से इतना प्यार करते हें के इन्होने खुद के घर में अपनी की स्मर्तियाँ अपने साथ रखने के लियें पत्नी की मूर्ति स्थापित कर पत्नी को घर आंगन बना दिया दिल में बसी पत्नी की मूर्ति को घर में उकेर कर उसको लोकार्पित भी करवाया हे हाल ही में इन जनाब नर स्व लिखित पुस्तक शब्द यात्रा का विमोचन करवाया हे और इसके तुरंत बाद कुछ पंक्तियों के साथ " झांके कोई भी दर्पण में , तेरी ही तस्वीर दिखती हे
चाँद पुनमी लखे सरोवर ,तेरी लगती हे परछाई
जीवन के अर्थों में घुल कर ,तुम बन गयीं जिंदगी मेरी
इतने हुए एकाकार तेरे बगेर झूंठे लगते अब ब्याह सगाई ।
दोस्तों इस महान लेखक महान शख्सियत की आँखे नम थी और पत्नी की याद को अमर अजर बनाने का संकल्प इनके मन और मस्तिष्क में था इसीलियें इस शख्सियत ने अपनी नम आँखों को रुमाल से पोंछा और घर के आँगन में स्थापित की गयी स्वंम की अर्धाग्नी स्वर्गीय श्रीमिति शाति देवी की मूर्ति का अनावरण बाबा उमा केलाश पति दम्पत्ति से करवाया इस दादा मदन मदिर की खुद के दुखों और एकाकी पन से लड़ने और जूझने की इस दादागिरी भरे अंदाज़ को देख कर सब आवाक थे ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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