राजथान में वर्ष २००९ में नगरपालिका कानून संशोधित किया गया था और इसी तर्ज़ पर यहाँ नगरपालिका चुनाव सम्पन्न हुए थे नये पालिका चुनाव में पालिका अध्यक्षों के जनता ने सीधे वोट देकर चुनाव किये हें जबकि पार्षद और कोर्पेटर अलग से चुने गये हें पालिका कानून की धारा ५३ में तानाशाह या विधि विरुद्ध काम करने वाले बोर्ड अध्यक्ष को अविश्स्वस प्रस्ताव से हटाने का प्रावधान हे लेकिन सरकार ने कुछ बोर्डों में कोंग्रेस का अध्यक्ष और पालिका में पार्षद अल्पमत में होने के कारण अविश्वास प्रस्ताव के डर से एक अध्यादेश निकाल कर इस प्रावधान को रोक दिया था जिसे राजस्तान हाई कोर्ट ने तानाशाही मान कर इसे रोक दिया हे और अविश्वास प्रावधान को यथावत रखा हे ।
राजस्थान में जयपुर सहित कई स्थानों पर कोंग्रेस का अध्यक्ष तो हे लेकिन कोंग्रेस के पार्षद अल्पमत में हें और ऐसी स्थिति में वोह घबरा रहे थे लेकिन उन्हें तानाशाह बनाने के लियें सरकार ने यह अस्न्वेधानिक प्रक्रिया अपनाई थी बस इस मामले में डूंगरपुर के उपाध्यक्ष राजस्थान हाईकोर्ट में फरियाद लेकर पहुंचे थे और इसी मामले की सुनवाई के बाद राजस्थान हाईकोर्ट के जज ने इसी अस्न्वेधानिक करार देते हुए इस अध्यादेश पर रोक लगा दी हे हाई कोर्ट ने कहा के जब प्रधानमन्त्री राष्ट्रपति के खिलाफ भी यह कार्यवाही होती हे तो पलिका अध्यक्षों के लियें बने कानून में इस प्रावधान को रोक देना अस्वेधानिक हे राजस्थान में कोंग्रेस सरकार की कानून के मामले में यह लगातार हार हे पहले वसुंधरा भ्रष्टाचार मामले में माथुर आयोग जांच प्रक्रिया को हाई कोर्ट ने निरस्त किया फिर पालिका कानून में आरक्षण प्रक्रिया को हाईकोर्ट ने अस्वेधानिक बताया फिर गुर्जर आरक्षण के कानून को निरस्त किया अब इस संशोधन को निरस्त करने के बाद राजस्थान में सरकार के बनाये हुए कानूनों की लगातार हार से स्पष्ट हे के सरकार का विधि विभाग सही काम नहीं कर रहा हे लेकिन पालिका कानून में इस अविश्वास प्रस्ताव प्रक्रिया को भला करने के बाद जयपुर नगर निगम सहित कई पालिकाओं पर अविश्वास की तलवार लटक गयी हे । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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