राजस्थान की ओध्ह्योगिक नगरी कोटा में इन दिनों देश के दूरदराज़ इलाकों से आरहे बच्चों में निराशावाद आने से आत्म हत्या का सिलसिला शुरू हो गया हे और विभिन्न अनावश्यक दबाव के चलते यह सिलसिला थमने का नाम नहीं लर रहा हे कोसों दूर बेठे अभिभावक अपने इन लालों को बिना किसी कारण खोते जा रहे हें कोटा में इस कार्यवाही के चलते सरकार तो चुप हे लेकिन एक इमादर पुलिस अधिकारी और कुछ पत्रकार ऐसे नेराश्य के दोर में गये बच्चों को तलाश कर उनसे दोस्ती कर उन्हें हिम्मत दिलाने का काम कर रहे हें ।
एक पुलिस अधिकारी के सर्वेक्षण के मुताबिक एक बच्चा जब कोटा पढने आता हे तो उसका स्वागत तनाव से होता हे खुद जिस कोचिंग में उसे पढना हे पहले तो वहां एडमिशन की चिंता ,फिर किस बेज में उसे पढ़ाया गया हे उसकी चिंता फिर कोन टीचर उसे पढ़ा रहा हे उसकी चिंता फिर कोटा में मेस में खाने और होस्टल में रहें की चिंता धोबी की चिंता नाश्ते की चिंता ओटो, टेम्पो से आने जाने की चिंता और फिर कोचिंग में प्रतियोगी छात्रों से आगे निकलने का दबाव साथ ही कुछ नोटोरियस छात्रों और लम्पटों से दूर रहने की फ़िक्र कोई चीज़ छीन ली गयी या चुरा ली गयी तो पुलिस द्वारा बिना रिपोर्ट लिखे एक सादे गेर कानूनी रजिस्टर पर रिपोर्ट दर्ज कर टरका देने या फिर बच्चों से अवेध चोथ वसूली की चिंता उन्हें सताती रहती हे जो बच्चे इससे जूझ कर आगे निकल जाते हें वोह कामयाब और जो बच्चे हार जाते हें निराश हो जाते हें वो बस आत्महत्या कर लेते हें एक पुलिस अधिकारी जो ईमानदार हें वोह इन बच्चों के मित्र बन गये हें और आज इन अधिकारी के पास सेकड़ों बच्चों के इ मेल संदेश आते हें जिसमें पुलिस से जुड़े लोगों की आम शिकायत होती हे ओटो की लूट,होस्टल की लूट,किताबों वालों की लूट,मेस वालों की लूट की भी आम शिकायतें होती हे ऐसे में इन बाहर से आये बच्चों का कोई दोस्त नहीं बनना चाहता बस सब इनके साथ व्यवसाय कर इनसे कमाना चाहते हें । इसी मानसिक दबाव के चलते गत माह कोटा में १३ बच्चों ने बिना किसी कारण आत्म हत्या की हे । इस आत्महत्या के मामले में पुलिस रोजनामचे में कार्यवाही करती हे पोत्मर्तं करवाती हे और फिर लाश सुपुर्दगी कर इतिशिरी कर लेती हे कोटा में इन मामलों में अगर दंड प्रक्रिया संहिता की धरा १७४ के प्रावधानों के स्थान पर अगर १७६ सी आर पी सी के तहत कार्यवाही हो तो फिर तो कुछ ना कुछ राज़ तो निकलेगा ही सही पुलिस बच्चों का तो रिकोर्ड रखती ही हे लेकिन अगर बच्चों की आत्म हत्या के बाद अगर सख्ती से जांच करे तो इस दबाव के लियें ज़िम्मेदार लोगों को पकड़ा जाकर दोषी लोगों को सजा दिलवाने तक पहुँचा जा सकता हे और इससे फिर आत्महत्याओं की पुनराव्रत्ति पर रोक लग सकती हे ।
मेरी इन इमानदार कर्तव्य निष्ट पुलिस अधिकारी जी से विनती हे के वोह इन बच्चों के प्रति अपना दोस्ताना प्रेम और रिसर्च जारी रखें इस काम में में खुद और कोटा के कई लोग उनकी मदद करने को तत्पर रहेंगे । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
29 जनवरी 2011
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दुखद. अत्यंत दुखद. प्रशासन के चेतने का समय है.
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