आपका-अख्तर खान

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12 दिसंबर 2010

मेरी झुर्रिया

देख
मेरी पेशानी की
यह झुर्रियां
देख
मेरे कपकपाते हुए
लाठी
सम्भाले यह हाथ
तू तो जवान हे
बहु भी हे
आज
तेरे साथ
फिर बता
क्यूँ लगाता हे
मेरे टूटे मकान
पर तू
कब्जा करने के लियें
घात
मेरी जिंदगी का तो अब
आखरी पढाव हे
फिर भी
में हर कदम पे
मेरी पेंशन से
देता हूँ
तेरा साथ
एक तू हे
जो
इस उम्र में
दे रहा हे
मुझे विश्वासघात
जो दिया हे
तुने
आज मुझे
देख लेना
गोद में जो उठा रखा हे तुने पोता मेरा
देखा हे इसने
करते हुए तुझे
जो मेरे साथ
एक दिन
वही करेगा
यह भी बुढापे में
तेरे साथ ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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