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12 दिसंबर 2010

शर्म से तार तार हुआ बाप

आज की इस
आधुनिक
दुनिया का एक बाप
जिसके पास सब कुछ हे
बस फिर भी
अय्याशी के लियें
वोह रोज़
नई नई बार गर्ल तलाश रहा हे
एक दिन
बहुत नई कमसिन बार गर्ल की
एक दलाल से उसने की डिमांड
बस फिर किया था
दलाल ने मनचाहे रूपये लियें
और दुसरे दिन
एक अँधेरे कमरे में जहां लाईट
थोड़ी देर पहले ही गयी थी
४ बेटियों के बाप को
साथ उस लडकी के
भेज दिया
हवस की आग में डूबा जब यह
बाप चेहरे से इस कमसिन लडकी के '
उठाया जब इसने नकाब
तो बस बिजली जो गुल हुई थी
एक फिर से आ गयी
कमरा हुआ रोशन
सामने जब
बेटी को
इस हाल में देखा
तो
शर्मिंदगी के
अँधेरे में
खो गया यह बाप ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

2 टिप्‍पणियां:

  1. यह तो बहुत सुन्दर और सचेत करती कविता है.

    पाखी की दुनिया में भी आपका स्वागत है.

    जवाब देंहटाएं
  2. sundar...bold our sachet karati kavita....vartamaan sthiti kaa aapne sahi mulyaankan kiya hai is kavita ke jariye.

    जवाब देंहटाएं

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