आपका-अख्तर खान

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19 दिसंबर 2010

यह आंसू ....

यह फ़क़त
पानी के
कतरे नहीं
आंसू हें मेरे
इनमें छुपे हें
कभी ख़ुशी
कभी गम के
जज्बात मेरे ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी यह सशक्त और सुन्दर रचना
    आज के चर्चा मंच पर सुशोभित की गई है!
    http://charchamanch.uchcharan.com/2010/12/375.html

    जवाब देंहटाएं
  2. बिल्कुल सही कह रहे हैं………आँसुओ की भी जुबान होती है।

    जवाब देंहटाएं
  3. कितने भाव व्यक्त करते हैं आंसू!
    सुन्दर अभिव्यक्ति!

    जवाब देंहटाएं
  4. मोती से अनमोल इन आँसुओं को यूं ही गंवाईये । वन्दना जी सच ही कहा है इनकी भी जुबाँ होती है ।

    जवाब देंहटाएं
  5. इनमें छुपे हें
    कभी ख़ुशी
    कभी गम के
    जज्बात मेरे

    आंसुओं की भाषा की दुनिया ही कुछ अलग है।
    छोटी रचना किंतु गहरे भाव।

    जवाब देंहटाएं

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