आपका-अख्तर खान

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19 दिसंबर 2010

ज़मीं पर गिरा दरख़्त ..

कल एक
दरख्त
जो
तन कर
ज़मीं पर
खड़ा रह कर
अकड रहा था
दुसरे फलदार
झुखे हुए
दरख्त
उसे देख कर
मुस्कुरा दिए
झुखे हुए
लचीले दरख्तों को
पता था
के गुरुर में डूबा
तन कर खड़ा
यह दरख्त
हवा का
एक झोंका
भी ना सह सकेगा
और देख लो
जो दरख्त
तन कर खड़ा था
वोह ज़मीं पर पढ़ा हे
क्योंकि
हवाओं की
ताकत का
उसे अंदाजा ना था
जो झुके थे
जो लचीले थे
आज भी देख लो
वोह दरख्त
हवाओं से
टकरा कर
भी खड़े
मुस्कुरा रहे हें ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

2 टिप्‍पणियां:

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