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19 दिसंबर 2010

लम्हा भर की मुस्कराहट

लम्हा भर की मुस्कुराहट

. 19.12.10
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लम्हा भर की
मुस्कुराहट
और जिंदगी
भर का रोना ,
गरीबी ही
मेरी
अब तो हे
ओड़ना और बिछोना ,
आंसुओं में
भिगोके
जिंदगी को
क्यूँ यूँ
डुबोता हे
उठ चल
आगे चल
देख ले
जिंदगी में
तेरे कोशिश करे
तो बस
सामने हे
सोना ही सोना ।
हिला हाथ
उठ ज़मीं से
उठा ले
ज़मीं पर
पढ़ा यह सोना
वरना
पढ़ा पढ़ा
कोसता रह
अपनी किस्मत को
के जिंदगी में
तेरे हे
रोना ही रोना
होसलों को
बना पंख
एक उड़ान तो भर
फिर देख ले
जो चाहेगा
वही होगा
ओढना तेरा
वही होगा बिछोना तेरा ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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