क्यूँ
क्सिके लियें
उदास
होते हो
कोन था
तुम्हारा अपना
जो छुट गया हे
जिसे तुम
अपना समझे थे
वोह तो
पहले से ही
किसी और का
हो लिया था
जो ना था
कभी
तुम्हारा
उसके बिछड़ने पर
यह उदासी यह बेबसी
यह आंसू यह पछतावा केसा
उठो
समुन्द्र बनो
खुद बा खुद
नदिया कई
तुममे समा जाने को
बेचेन हो जायेंगी
कह दो उनसे
तू नहीं तो कोई बात नहीं
अब तो बस
हमारे लियें
यही सच रहा हे
को तू नहीं तो
और सही
और नहीं तो और सही
फिर उदासी
मेरे नहीं
तेरे चेहरे पर आएगी
मेरी उदासी तो सच में
चली जाएगी
लेकिन
तेरे चेहरे पर बस
अब उदासी चली आएगी ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
17 दिसंबर 2010
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"उठो
जवाब देंहटाएंसमुन्द्र बनो"
सार्थक उद्घोष...
सुन्दर रचना!