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16 नवंबर 2010

इदुज्ज़ुहा मुबारक हो

दोस्तों कल इदुज्ज़ुहा यानि बकराईद हे आज बोहरा समाज की बकराईद थी , कुर्बानी का यह त्यौहार विश्व में खुदा की राह यानी अमन चेन और सेवा कार्यों के लियें सब कुछ कुर्बान कर देने की सीख देता हे , इस त्यौहार के एक दिन पहले विश्व के मुसलमान अरब में स्थित काबे की परिक्रमा कर वहां करीब एक माह के दोरान त्याग तपस्या का पाठ पढ़ कर अंतिम रूप से हज का समापन करते हें और पूरी तरह से पवित्र यानी एक जन्में बच्चे की तरह इन्नोसेंट बन जाते हें जिहें समाज में एक विशिष्ट स्थान पर बिठा कर उनका मन सम्मान क्या जाता हे , कुल मिलाकर दोस्तों मुलमानों का यह त्यौहार त्याग और बलिदान का संदेश देने का त्यौहार हें , इस्लामिक रिवायत के अनुसार पैगम्बर इब्राहिम अलेहस्स्लाम को जब इश्वर्वानी यानि वही संदेश में कहा गया के इश्वर खुदा तुमसे क़ुरबानी मांगता हे और जो भी तुम्हे सबसे ज्यादा प्यारी चीज़ हो उसको खुदा की राह में कुर्बान कर अपनी परीक्षा दो , इस पर इब्राहिम अलेहस्स्लाम जो सबसे ज्यादा खुद के बेटे इस्माइल अलेहस्स्लाम से प्यार करते थे उन्होंने उन्हें सुबह सवेरे साथ लिया और एक नदी के किनारे ले जाकर बच्चे को सब बात बताई उन्होंने हंसते हुए खड़ा की राह में कुर्बान होने की सहमती दी इस पर इब्राहिम अलेहस्स्लाम ने कहीं उनके हाथ काँप ना जाएँ इसलियें अपनी आँखों पर पट्टी बाँधी बच्चे को लिटाया और जेसे ही बच्चे इस्माइल अलेहस्स्लाम के गले पर छुरी रख कर उन्हें खुदा की राह में कुर्बान करना चाहा तो एक बकरे यानी दुम्बे की आवाज़ सुनकर वोह चमक गये और उन्होंने छुरी आसमां में उछाली तो आसमां में उडती हुई टिड्डी की गर्दन कट गयी और छुरी जब नदी में गिरी तो मछली के गड्फ्दे बन गये तब से ही मुसलमान टिड्डी और मछली को हलाल करके नहीं खाते हें इधर जब इब्राहिम अलेहस्स्लाम ने आँखों से पट्टी हटाई तो उन्होंने खुदा का चमत्कार देखा के दुम्बा यानी बकरा तो नीचे कुर्बान पढ़ा था और उनके बेटे पास खड़े मुस्कुरा रहे थे बस इसी करिश्मे को देख सब खुदा पर कुर्बान होना चाहते हें इससे संदेश मिलता हे के खुदा की राह में उसके बताए हुए रास्ते पर चलने केलियें जो भी कीमती और पसंदीदा चीज़ आपके पास हे उसे कूड़ा की रह में कुर्बान करने का साहस रखो और इसके लियें हमेशा तय्यार रहो इससे हमेशा तुम्हारी कामयाबी रहेगी । इसके बाद रिवायतों के चलते हदीस बदली और परम्परा बन गयी के एक मुसलमान जो साहिबे हेसियत यानी ५२ तोला चांदी के बराबर सम्पत्ति रखता हे वोह एक बकरा पालेगा और उसकी सेवा करने के बाद उसे इस दिन खुदा की राह में कुर्बान कर देगा इसकी विशिष्ट नमाज़ अदा होगी । लेकिन आज दोस्तों परम्पराएँ बदल गयी हे विश्व भर में मुसलमानों ने इसे रस्म निभाने या फिर शेखी बघारने का त्यौहार मना लिया हे जिनके पास सिमित पैसा हे वोह तो ईद के एक दिन पहले बाज़ार से बकरा खरीद्दते हें और फिर दुसरे दिन कसाई को बुलाकर उसे कुर्बान कर यह रस्म अदा करते हें बात साफ़ हे के इससे कोई भी मुसलमान क़ुरबानी के दर्द का एहसास नहीं कर पता और उसे बकरा काटना उसकी खाल साफ़ करना भी नहीं आता इसीलियें वोह कसाई का मोहताज रहता हे दूसरी तरह के मुसलमान ऐसे होते हें जो अपने धनी होने का ढिंढोरा पीटने के लियें कम कीमत वाले बकरे को भी शेखी बघारने के लियें कई गुना महंगी कीमत में खरीद लेते हें मीडिया में इसकी खबरें बनवाते हें अब आम धर्म की शिक्षा पढ़ा लिखा मुसलमान बस यही सोचता हे क्या यही मुसलमान हे क्या यही कुर्बानी हे । सभी ब्लोगर्स भाइयों और बहनों को एक बार फिर ईद की बहुत बहुत मुबारकबाद । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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