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01 नवंबर 2010

मुबारक हो तुम्हे

एक पेड़ ने
पतझड़ के मोसम में
गिरते हुए
पत्तों को
देख कर
सीधे कुछ लोगों से
यह कहा
मुबारक हो तुम्हे
लो फिर
पतझड़ का मोसम
आ गया
एक एक पत्ता
छोड़ेगा साथ मेरा
तना सिर्फ तन्हा होगा मेरा
लेकिन
सोच लो
हारा नहीं हूँ में
फिर उगेंगी
मुझ में नाज़ुक कोपलें
फिर बनेंगी
यह हरी पत्तिया
फिर ठुठ से बनूंगा
हरा छायादार पेड़ में
मेरी छाया में
बैठेंगे फिर से लोग
मेरी छाया में
सुस्तायेंगे
फिर से लोग
ऐ इंसानों
देखो मुझे देखो
और तुम कुछ तो मुझ से सिखों
बस हारो नहीं
घबराओ नहीं
मोस की तरह
कभी तुम पर भी
पतझड़ आएगा अगर
तो बस समझ लो
फिर से
हरियाली आने वाली हे ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

1 टिप्पणी:

  1. किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

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