आज देखो
बाल बिखेरे
नहाकर
मेरी पत्नी
पास मेरे आकर
बेठी हे
उसे हे
कम करने वाली
बायीं का इन्तिज़ार
क्योंकि
वोह बन गयी हे
बाईयों की ब्लेकमेलिंग का शिकार
वोह आये
तो सफाई करे
वोह आये तो पोचा लगाये
वोह आये
तो खाना बनाये
में सोचता हूँ
केसे हो गयीं
आजकी बिविया बेकार
पहले यही नारी
जो मेरी मां हुआ करती थी
सुबह सवेरे उठ कर
चक्की पिसा करती थी
दुद्ध गायों का निकाल कर
गोबर उकेरा करती थी
फिर नाश्ता खाना बनाकर
खेतों पर
हल चलाया करती थी
हम जेसे कई बच्चे भी
इसी नारी ने पैदा किये
हमें पला पोसा बढा क्या
हमारी दादी , हमारी फूफी
जो भी था घर में
सभी का इस नारी ने
आदर सम्मान क्या
सोचता हूँ
एक वोह नारी हे
और एक मेरी पत्नी बेचारी हे ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
01 नवंबर 2010
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Zaman badal gya hai.......
जवाब देंहटाएंumda patiprem darshaya hai aapne.
जवाब देंहटाएंआज का घर बाई बिना चलता ही नहीं...बाई घर का सबसे अहम सदी हो गयी है...रोचक रचना.
जवाब देंहटाएंनीरज