खुदा की
एक अज़ीम
नियामत हे
पानी।
जिसके रंग हें अजीब
बस इसी का
नाम हे पानी ।
यह आसमां की
तरफ उठे
तो भाप हे ,
आसमां से
नीचे गिरे
तो बारिश हे ।
जम के गिरे तो ओला
गिर कर जमे
तो बर्फ हे ,
पट्टी पर गिरे तो
ओस और शबनम हे
पट्टी से निकले
तो अर्क और रस हे
आँखों से निकले
तो आंसू हे
जिस्म से निकले तो
पसीना हे ,
सांप में हो तो जहर हे
हरन में हो तो केसर हे
हिमालय से निकले तो गंगा हे
मऊ से निकले तो चम्बल हे
कहीं जमा हो जाए
तो तलब या झील हे
हजरत इस्माइल के
कदमों से निकले तो
आबे जम जम हे
और अगर शिव जी की जता से निकले
तो गंगोत्री हे
पानी रे पानी
तेरा रंग केसा
वाह पानी वाह पानी
तेरी अजब दास्ताँ
तेरी अजब कहानी
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
23 नवंबर 2010
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सच ही अजीब दास्ताँ है मगर इसके बिना जीवन मे क्या रह जायेगा। जीवन का हर रंग पानी से है।अच्छी रचना। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंअजीब दास्ताँ ...पर इसके बिना जीवन संभव नहीं...एक मोलिक रचना ...शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंचलते -चलते पर आपका स्वागत है