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23 नवंबर 2010

पानी रे पानी तेरा रंग केसा ....

खुदा की
एक अज़ीम
नियामत हे
पानी।
जिसके रंग हें अजीब
बस इसी का
नाम हे पानी ।
यह आसमां की
तरफ उठे
तो भाप हे ,
आसमां से
नीचे गिरे
तो बारिश हे ।
जम के गिरे तो ओला
गिर कर जमे
तो बर्फ हे ,
पट्टी पर गिरे तो
ओस और शबनम हे
पट्टी से निकले
तो अर्क और रस हे
आँखों से निकले
तो आंसू हे
जिस्म से निकले तो
पसीना हे ,
सांप में हो तो जहर हे
हरन में हो तो केसर हे
हिमालय से निकले तो गंगा हे
मऊ से निकले तो चम्बल हे
कहीं जमा हो जाए
तो तलब या झील हे
हजरत इस्माइल के
कदमों से निकले तो
आबे जम जम हे
और अगर शिव जी की जता से निकले
तो गंगोत्री हे
पानी रे पानी
तेरा रंग केसा
वाह पानी वाह पानी
तेरी अजब दास्ताँ
तेरी अजब कहानी
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

2 टिप्‍पणियां:

  1. सच ही अजीब दास्ताँ है मगर इसके बिना जीवन मे क्या रह जायेगा। जीवन का हर रंग पानी से है।अच्छी रचना। शुभकामनायें।

    जवाब देंहटाएं
  2. अजीब दास्ताँ ...पर इसके बिना जीवन संभव नहीं...एक मोलिक रचना ...शुभकामनायें
    चलते -चलते पर आपका स्वागत है

    जवाब देंहटाएं

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