भावना की ताल पर
शब्द की गागर भर
प्रेम का पानी लाना हे
प्रतिष्टा के मोह की दलदल पर
इतरा कर फिसल नहीं जाना हे
पयजल जो चाहे जो पिए
विज्ञापन के नशे में
ऐसा मुझे इसे
जहर नहीं बनाना हे
मेरे छंदों को
और कोई प्यास का
प्रतीक नहीं बनाना हे
इन्हें तो हर
अधर पर बिखरी
प्यास को मिटने में
स्वयम ही मिट जाना हे ।
प्रोफेसर प्रेम मोहन लखोटिया
संकलन करता अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
15 अक्तूबर 2010
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बहुत सुन्दर भावना|
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