सोचो
धर्म क्या हे
धर्म कोई पगड़ी नहीं
जो मन्दिर में जाने पर
पहना जाये ,
और घर या दूकान पर आयें
तो इस धर्म की पगड़ी को
सर से उतार लें
धर्म कोई टोपी नहीं
जो मस्जिद में जाओ
तो पहन ली
और बाहर आये तो उतार दी
सोचो धर्म क्या हे और धर्म
कहां हे
धर्म तो तुम्हारे अंदर हे
इसे जांचो , इसे परखो
और फिर इसे अंतर्मन से अपनाओ
तुम , तुम्हारा घर , तुम्हारा परिवार
तुम्हारा समाज , तुम्हारा देश
बस इसी फार्मूले से सुधर जाएगा ।
क्या तुम मेरे साथ मिलकर
इस समाज , इस देश को सुधारोगे ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
15 अक्तूबर 2010
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सुन्दर आहवान और रचना
जवाब देंहटाएंधर्म को आखिर पहचानता कौन है?
जरूर हम आपके साथ हैं
जवाब देंहटाएंधरम तो आज राजनीती की टोपी हो गया है और इसकी टोपी उसके सर जैसा काम लिया जा रहा है इस धरम रुपी टोपी से.
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना.